राज्यसहकारिता

निर्वाचन प्राधिकरण ने सहकारी संस्थाओं की चुनाव प्रक्रिया को बीच में रोका, उठने लगे सवाल

जयपुर, 14 फरवरी (मुखपत्र)। राजस्थान राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण द्वारा एक अभूतपूर्व निर्णय लेते हुए सहकारी संस्थाओं की निर्वाचन प्रक्रिया को बीच में ही रोक दिया गया है। प्राधिकरण के इस निर्णय पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी बृजेंद्र राजौरिया की ओर से 13 फरवरी 2023 को एक आदेश जारी कर, सहकारिताओं की चुनाव प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया। हालांकि फिलहाल केवल क्रय विक्रय सहकारी समितियों की चुनाव प्रक्रिया को ही बीच में रोका गया है जबकि कुछ जिलों में पैक्स, लैम्पस और सहकारी उपभोक्ता भंडारों की चुनाव प्रक्रिया को जारी रखा गया है।

प्राधिकरण की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि विधानसभा सचिवालय द्वारा 13 फरवरी 2023 को प्राधिकरण को पत्र लिखकर, 3 जनवरी 2023 के परिपत्र का हवाला देते हुए लिखा गया है कि वर्तमान में लोकसभा और विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। कई विधायक एवं सांसद सहकारी संस्थाओं के सदस्य हैं तथा प्रत्यक्ष रूप से इन संस्थाओं के चुनाव में भाग लेते हैं। विधायकों एवं सांसदों द्वारा सत्रकाल के दौरान सहकारी समितियों के चुनाव में सम्मिलित होना असम्भव है एवं इससे विधायी कार्य में बाधा उत्पन्न होगी।

इसलिए राजस्थान में सहकारी संस्थाओं (क्रय विक्रय सहकारी समितियों) के संचालक मंडल, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के चुनाव को तुरंत प्रभाव से सत्रकाल की अवधि तक स्थगित किया जाये। राजौरिया के अनुसार, विधानसभा सचिवालय के पत्र को ध्यान में रखते हुए, राज्य की जिन क्रय विक्रय सहकारी समितियों में चुनाव प्रक्रियाधीन हैं तथा जिन क्रय विक्रय सहकारी समितियों में निर्वाचन प्रक्रिया आरम्भ की जानी है, को तत्काल प्रभाव से सत्रकाल तक की अवधि के लिए स्थगित किया जाता है।

अधिनियम में चुनाव प्रक्रिया को रोकने का सीमित प्रावधान

प्राधिकरण के इस निर्णय पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। सहकारी नियम-अधिनियम के जानकारों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों के लिए चुनाव प्रक्रिया को बीच में रोकना या बाधित करना तथा एक बार चुनाव कार्यक्रम जारी करने के बाद, उसे बिना किसी ठोस कारण के रद्द किये जाने से सहकारी लोकतंत्र को नुकसान पहुंचेगा। प्राधिकरण का यह निर्णय सहकारी लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है।

एक सेवानिवृत्त अधिकारी का कहना है कि प्रक्रियाधीन चुनाव को स्थगित किया जाना राजस्थान सहकारी सोसाइटी अधिनियम 2001 की धारा 34(6)का सीधा उलंघन है। एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद, उसे बीच में नहीं रोका जा सकता है। अधिनियम की धारा 34(6) में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी सहकारी सोसाइटी के निर्वाचन की प्रक्रिया एक बार प्रारम्भ होने के पश्चात, प्राकृतिक आपदा व कानून और व्यवस्था के भंग होने की परिस्थिति को छोडक़र, किसी भी कारण से रोकी या स्थगित नहीं की जाएगी। प्राधिकरण द्वारा चुनाव को स्थगित किये जाने के लिए जो आधार लिया गया है, वह प्राकतिक आपदा या कानून और व्यवस्था के भंग होने की श्रेणी में तो कतई नहीं आता।

हाईकोर्ट के आदेश का क्या होगा?

अब सवाल यह भी है कि क्या सभी क्रय विक्रय सहकारी समितियों में विधायक और सांसद सदस्य हैं? यदि नहीं हैं तो वहां चुनाव स्थगित क्यूं किये गये? प्राधिकरण की ओर से जारी प्रत्येक निर्वाचन कार्यक्रम आदेश में, यह उल्लेख किया गया है कि राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश की पालना में चुनाव करवाये जा रहे हैं। ऐसे में क्या चुनाव को स्थगित करना न्यायालय के आदेश/निर्देश की अवमानना नहीं है?

चुनाव के दौरान संचालक मंडल की स्थिति शून्य हो जाती है

विशेषज्ञ बताते हैं कि जब किसी संस्था की चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तो सम्बंधित सहकारी समितियों का संचालन प्राय: ठप हो जाता है और वहां कार्यरत संचालक मंडल की स्थिति शून्य हो जाती है। अब यदि यह प्रक्रिया दो या तीन महीने तक (लोकसभा का बजट सत्र 6 अप्रेल 2023 तक चलेगा) स्थगित रखी जाती है तो इन संस्थाओं का संचालन कैसे होगा? क्योंकि यदि चुनाव प्रक्रिया को स्थगित रखते हुए प्रशासक लगाए जाते हैं तो ये मामला कोर्ट में जाना तय है और कोर्ट इसे अवमानना की श्रेणी में रख सकता है।

पहले गलत आदेश जारी किये या अब

जानकारों का कहना हैं कि लोकसभा या किसी भी राज्य विधानसभा का सत्र अचानक से नहीं बुलाया जाता। महीनाभर पहले इसकी विधिवत सूचना जारी होती है कि फलां तारीख से विधानसभा या लोकसभा का सत्र आरम्भ होने वाला है। विशेषकर बजट सत्र की तारीख लगभग हर साल निश्चित होती है। ऐसे में अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि लोकसभा या विधानसभा के बजट सत्र के दौरान निर्वाचन प्रक्रिया प्रारम्भ करने का आदेश जारी क्यों किया गया। क्या प्राधिकरण के प्रशासनिक अमले ने इस पर कोई एक्सरसाइज नहीं की? लापरवाही किस स्तर पर हुई? यदि पूर्व के आदेश सही थे तो अब चुनाव स्थगित किये जाने का आदेश सही कैसे हो सकता है?

…. तो बदल जाएंगी परिस्थितियां

राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र 23 जनवरी 2023 से आरम्भ हो चुका है और तब से आज तक, श्रीगंगानगर और बीकानेर की ही लगभग दो दर्जन क्रय विक्रय सहकारी संस्थाओं में चुनाव प्रक्रिया या तो सम्पन्न हो चुकी या फिर आरम्भ हो चुकी है, कुछ में शुरू होने वाली है। आमतौर पर राज्य विधानसभा का बजट सत्र मार्च माह के मध्य तक चलता है।

इसी प्रकार, लोकसभा के बजट सत्र का प्रथम चरण 13 फरवरी को समाप्त हो चुका है जबकि दूसरा चरण 13 मार्च से शुरू होकर 6 अप्रेल 2023 तक चलेगा। यदि लोकसभा के सत्र के आधार पर ही दोबारा चुनाव प्रक्रिया आरम्भ की जाती है तो नया वित्त (2023-24) अस्तित्व में आ जाएगा और इससे प्राय:-प्राय: प्रत्येक क्रय विक्रय सहकारी समिति, जहां चुनाव प्रक्रिया आरम्भ होने वाली हैं, वहां पर मतदाताओं के दृष्टिगत परिस्थितियों में बड़ा परिवर्तन आ जाएगा, जो चुनाव प्रक्रिया को न्यायिक प्रक्रिया में उलझाने के लिए पर्याप्त आधार बन सकता है। वर्तमान में जिन क्रय विक्रय सहकारी संस्थाओं में चुनाव करवाए जा रहे हैं या इसी वित्त वर्ष में आरम्भ होने हैं, वहां केवल वही सदस्य या प्राइमरी सहकारी संस्थाएं चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सकते/सकती हैं, जिनके द्वारा पिछले वित्त वर्ष के दौरान, निर्धारित राशि की खरीद की जा चुकी है।

न्यायिक प्रक्रिया में उलझ सकती है चुनाव प्रक्रिया

अब यदि आगामी वित्त वर्ष यानी साल 2023-24 में चुनाव करवाए जाते हैं, तो इस वित्त वर्ष की शेष अवधि में हजारों सदस्य नियमानुसार, निर्धारित राशि की खरीद कर, चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने योग्य हो जाएंगे, जबकि वर्तमान में वे खरीद नहीं किये जाने के आधार पर, मतदाता सूची में बाहर हो चुके हैं। जिन संस्थाओं में निर्वाचन का नोटिस जारी किया जाकर प्रस्तावित मतदाता सूची या अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन हो चुका है,

वहां के लिए सबसे अधिक पेचिदा स्थिति है। वंचित सदस्यों को, वित्त वर्ष की शेष अवधि में खरीद किये जाने के बावजूद यदि मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया तो उन्हें कोर्ट में जाने का आधार मिल जाएगा और यदि उन्हें शामिल कर लिया गया तो, वर्तमान सदस्य, जो अपनी चुनावी बिसात बिछा चुके हैं, उनके लिए कोर्ट की शरण में जाने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। कुल मिलाकर, दोनों ही स्थितियां, सहकारी लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं होंगी और एक दशक से अधिक समय पश्चात होने वाले चुनाव फिर से खटाई में पड़ सकते हैं।

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