सरकारिता और व्यक्तिगतता के बीच का मार्ग है सहकारिता
श्रीगंगानगर, 25 फरवरी (मुखपत्र)। दी गंगानगर केन्द्रीय सहकारी बैंक लिमिटेड के प्रधान कार्यालय में मंगलवार को अन्तरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 के उपलक्ष्य में कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता बीकानेर के जोनल एडिशनल रजिस्ट्रार राजेश टाक ने सहकारी अधिनियम, नियम एवं उपनियमों की विस्तार से व्याख्या करते हुए इसके महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नये को-ऑपरेटिव कोड में, अधिनियम को संशोधित करते हुए कई आवश्यक प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय द्वारा राज्यों को पैक्स के मॉडल बायलाज भेजे गए थे, जिन्हें राजस्थान के सहकारी अधिनियम, नियम के अनुरूप संशोधित कर नये बायलाज जारी कर दिए गए है।
उन्होंने कहा कि इससे राजस्थान में कार्यरत प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) और वृहदाकार बहुउद्देशीय प्राथमिक सोसायटी (लैम्पस) के स्थान पर अब बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि साख समितियां (एम-पैक्स) बन गयी हैं। ये एम-पैक्स अब अल्पकालीन ऋण वितरण एवं कृषि आदान विक्रय के साथ डेयरी, मत्स्यपालन, बैंक मित्र, कॉमन सर्विस सेंटर, गैस एजेंसी, पैट्रोल पम्प सहित 54 प्रकार के काम कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि सहकारी प्रतिनिधियों को अपने अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों की भी पूरी जानकारी हो, इसके लिए उपनियमों में स्पष्ट व्याख्या की गई है।
उन्होंने कहा कि कई प्रकार की सोसाइटियां होती हैं, जिनके भिन्न-भिन्न कार्य होते हैं। एक्ट और रूल्स हर सोसाइटी की छोटी-छोटी चीजों को कवर नहीं कर सकता। उनको कवर करने के लिए बायलॉज बना दिये गये कि कौनसी सोसाइटी, कैसे काम करेगी। जो रूल्स हैं, वो एक्ट का उल्लंघन नहीं कर सकते और जो बायलॉज हैं, वो एक्ट और रूल्स का उल्लंघन नहीं कर सकते। रूल्स बनाते समय एक्ट का ध्यान रखना जाता है और बायलॉज बनाते समय एक्ट और रूल्स, दोनों का ध्यान रखना पड़ता है।
राजेश टाक ने कहा, भारत सरकार ने बायलॉज बदलने के साथ-साथ सहकारी क्षेत्र के लिए 54 पहलें भी जारी की। पहले 48 पहलें थी, जिन्हें बढ़ाकर 54 किया गया। ये पहलें, यह दर्शाने के लिए हैं कि हम क्या-क्या कर सकते हैं। इसके मूल में पैक्स हैं, हालांकि बाद में इसमें दूध समितियां और मत्स्य समितियां भी जोड़ दी गयी। उन्होंने कहा कि देश में, भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार की समितियां सुदृढ़तापूर्वक कार्यरत हैं। जैसे गुजरात में मिल्क सोसाइटी और समुद्रतटीय क्षेत्रों में मत्स्य समितियां अधिक मजबूत एवं क्रियाशील हैं क्योंकि ये समितियां वहां की जनता की आय और रोजगार का साधन हैं। इसी प्रकार, राजस्थान में ग्राम सेवा सहकारी समितियां (जीएसएस) अधिक उपयुक्त हैं।
जीएसएस को परम्परागत कार्यों में बदलाव लाना होगा
उन्होंने कहा, भारत सरकार की स्पष्ट मंशा है, जो जहां जो सोसाइटी अधिक मजबूत है, वहीं उस क्षेत्र मेें अन्य सेवाएं भी उपलब्ध कराये। राज्य में ग्राम सेवा सहकारी समितियां ऋण वितरण के परम्परागत व्यवसाय में ही जुटी हुई हैं। जबकि गांवों का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। वाणिज्यिक एवं निजी बैंकों की गांवों में सशक्त उपस्थिति के कारण, किसानों को ऋण वितरण में पैक्स का एकाधिकार समाप्त हो गया है। इसलिए, प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए पैक्स के स्वरूप एवं कार्यों में बदलाव की जरूरत है।
सहकारिता में सदस्यों के अधिकतम लाभ की बात
उन्होंने कहा कि सरकारिता और व्यक्तिगतता के बीच में सहकारिता है, जिसे बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है। व्यक्तिगतता में केवल व्यक्तिगत लाभ पर फोकस रहता है। जबकि सरकारिता में नियम-कानून में बंधकर काम करना पड़ता है। जबकि सहकारिता दोनों के बीच का रास्ता निकालता है, जिसमें न तो केवल व्यक्तिगत लाभ की बात होती है, न सरकारिता की भांति केवल नियम में बंधकर एवं नियंत्रण में रहना काम करना होता है। सहकारिता में सहकारी सोसाइटी के लाभ के साथ-साथ सदस्यों एवं आमजन के अधिकतम लाभ को ध्यान में रखकर काम किया जाता है।
केरल के किसानों के लिए सहकारिता संजीवनी है
केरल का उदाहरण देेते हुए टाक ने कहा कि केरल राज्य में छोटी जोत वाले किसान हैं, जिनके लिए सहकारिता संजीवनी का काम कर रही है। वहां अधिकांश किसान मसालों की खेती करते हैं, लेकिन कम कृषि भूमि होने के कारण, इनती मात्रा में कृषि जिंस प्राप्त नहीं हो पाती कि प्रत्येक किसान सुदूर मंडी में जाकर अपनी उपज का विक्रय कर सके, इसलिए वहां के किसान, अपने गांव की सहकारी सोसाइटी को अपनी कृषि जिंस देते हैं, जिसे मंडी में बेचने के उपरांत किसानों को भुगतान किया जाता है। इस प्रक्रिया में, संस्थाएं मामूली लाभ पर काम करती हैं, लेकिन अधिक लाभ सदस्यों के हिस्से में आता है।
वर्षभर सहकारिता का प्रचार-प्रसार होगा
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गंगानगर केन्द्रीय सहकारी बैंक के प्रबन्ध निदेशक संजय गर्ग ने बेहतर विश्व के निर्माण में सहकारिता की भूमिका को रेखांकित करते हुए बताया कि यूनाइटेड नेशन ने वर्ष 2025 को अन्तरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया है। साल भर में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जन-जन तक सहकारिता के उद्देश्यों का प्रचार किया जाएगा और अधिकाधिक लोगों को सहकारिता से जोड़ते हुए लाभान्वित किया जाएगा।

प्रदेश से अलग हटकर कार्यक्रम भी होंगे
उप रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां दीपक कुक्कड़ ने अन्तरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस पर भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन और राज्य स्तर पर एससीडीसी एवं जिला स्तर पर डीसीडीसी कमेटियों के गठन की जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष भर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का कलैण्डर जारी कर दिया गया है। इसके अलावा श्रीगंगानगर में महिला दिवस और उपभोक्ता दिवस पर भी अलग से कार्यक्रम करवाया जाना प्रस्तावित है। उन्होंने सभी सहकारजनों से आग्रह किया कि वे एनसीडी पोर्टल पर प्रतिदिन विजिट करें, जहां सहकारिता सम्बन्धी पूर्ण जानकारी उपलब्ध है।
कार्यक्रम को नाबार्ड के जिला विकास प्रबन्धक अमरजीत सिंह, श्रीकरणपुर क्रय-विक्रय सहकारी समिति के अध्यक्ष लखविन्द्र सिंह लखियां ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर उप रजिस्ट्रार, अनूपगढ़ प्रियंका जांगिड़, विशेष लेखा परीक्षक अमिताभ दिवाकर, बैंक के अधिशाषी अधिकारी एवं अन्तरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 कार्यक्रमों के नोडल अधिकारी भैरूसिंह पालावत, श्रीगंगानगर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भण्डार के महाप्रबन्धक सूर्यकान्त भी मंचस्थ रहे। कार्यक्रम में सहकारिता विभाग और सहकारी बैंक के अधिकारी, कर्मचारी एवं सहकारी जनप्रतिनिधि उपस्थित थे। मंच संचालन वरिष्ठ प्रबन्धक शिप्रा बहल ने किया।
अधिनियम की बारीकियों से समझाया
कार्यक्रम के दूसरे भाग में खण्डीय अतिरिक्त रजिस्ट्रार राजेश टाक ने सहकारिता विभाग और बैंक के अनुभागाधिकारियों को राजस्थान सहकारी सोसाइटी अधिनियम अन्तर्गत जांच बाबत तकनीकी मार्गदर्शन दिया। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत में अतिथियों ने अन्तरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के लोगो एवं प्रचार सामग्री का विमोचन किया।
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