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“सहकार से समृद्धि” के लक्ष्य के साथ पैक्स कर्मचारियों की सुध भी ले सरकार

जयपुर (मुखपत्र)। ‘सहकार से समृद्धि’ और ‘सहकारिताओं में सहयोग’ के लुभावने स्लोगनों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 की शुरूआत हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार के सहकारिता मंत्री अमित शाह, अलग-अलग मंच पर विधिवत रूप से अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 (आईवाईसी 2025) का औपचारिक शुभारम्भ कर चुके हैं। देश के समस्त राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय की ओर से वर्षभर में आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाकर जारी कर दी गयी है। राजस्थान के सहकारिता विभाग ने अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 का कलेण्डर और वर्षभर में आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों के लिए वार्षिक कार्य योजना जारी कर दी है, जिसमें उल्लेख है कि जनवरी 2025 से लेकर दिसम्बर 2025 तक किन-किन कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना है, कार्यक्रम का स्तर क्या होगा, कितने लोगों की सहभागिता रहेगी और कितना बजट व्यय किया जा सकेगा।

वर्षभर के कार्यक्रमों के आयोजन के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में एपेक्स लेवल कमेटी और जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय कमेटियों का गठन हो चुका है। सहकारिता विभाग की प्रमुख शासन सचिव एवं रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां, श्रीमती मंजू राजपाल अपने स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष में आयोजित होने वाली प्रमुख गतिविधियों, जागरूकता कार्यक्रमों को लेकर एकाधिक बैठक का आयोजन कर, अधिकारियों एवं सम्बंधित व्यक्तियों को दिशा-निर्देश दे चुकी हैं।

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष की चकाचौंध के बीच, सहकारिता आंदोलन की सबसे छोटी, किन्तु सबसे महत्वपूर्ण इकाई, सहकारी आंदोलन का नींव का पत्थर, हमारी पैक्स/एमपैक्स (राजस्थान में इन्हेें ग्राम सेवा सहकारी समिति लिमिटेड कहा जाता है) की ओर भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है। कृषक वर्ग का कल्याण और साहूकारों के चंगुल से बचाते हुए उनकी फसली जरूरतों का पूरी करने वाले पैक्स कार्मिकों की स्थिति चिंताजनक है।

भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय का पूरा फोकस पैक्स (PACS) पर हैं। इसके लिए देशभर में एकसमान मॉडल बायलॉज जारी किये गये और पैक्स को एमपैक्स (बहुउद्देश्यीय प्राथमिक कृषि ऋण समिति) का नाम दिया गया, जो अल्पकालीन फसली ऋण वितरण के साथ-साथ अनेक कार्य करते हुए, ग्रामीणों एवं कृषकों के लिए बहुउद्देश्यीय केंद्र के रूप में विकसित हो, जहां ऋण के अलावा, कृषि आदान, डेयरी उत्पाद, कस्टमर हायरिंग सेंटर (कृषि यंत्रीकरण केंद्र), एलपीजी, पैट्रोल पम्प, बैंकिंग, सामान्य सेवा केंद्र (सीएचसी) आदि सेवाएं सुलभ हों। चूंकि भारत सरकार और राजस्थान सरकार, प्रत्येक ग्राम पंचायत पर प्राथमिक कृषि साख समिति के गठन का लक्ष्य लेकर चल रही हैं, इसलिए पैक्स का बायबल होना आवश्यक है, तभी उसका सुचारू संचालन संभव हो सकेगा। यही कारण है कि भारत सरकार के सहकारिता मंत्री अमित शाह का पूरा ध्यान पैक्स पर है। वे ऋण वितरण के साथ-साथ दर्जनों काम पैक्स के लिए सुरक्षित रखने की योजना को आगे बढ़ा रहे हैं।

लेकिन इन सब के बीच, पैक्स कर्मचारियों की सुरक्षित सेवा शर्तें, नियोक्ता निर्धारण और सामाजिक सुरक्षा जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो अभी तक अनछुए हैं। राजस्थान की ही बात करें तो 8 हजार से अधिक पैक्स में कार्यरत लगभग 20 हजार कर्मचारियों का भविष्य अधरझूल में हैं। पैक्स कर्मचारियों के संगठन जब सुरक्षित भविष्य के लिए कॉमन कैडर, चिकित्सा सुविधा, पेंशन आदि मुद्दों पर बातचीत करने जाते हैं तो उच्च स्तर पर उन्हें एक ही उत्तर मिलता है, पैक्स स्वायत्तशासी निकाय हैं, आप पैक्स के कर्मचारी हैं, सहकारी सोसाइटी का संचालक मंडल ही आप का नियोक्ता है, लेकिन जब सरकार की योजनाओं को क्रियान्वित करने की बात होती है, तो यूनिट ऑफिसर, जिला केेंद्रीय सहकारी बैंक से लेकर, सहकारिता विभाग और सहकारिता मंत्रालय, सब पैक्स कर्मचारियों को अनुशासनात्मक कार्यवाही की लाठी से हांकने लगते हैं। जब राज्य सरकार या सहकारिता विभाग, वेतन-भत्तों के रूप में किसी प्रकार की प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता नहीं कर रहा और पैक्स कार्मिक खुद ही अपने संसाधनों से कमा-खा रहे हैं, तो फिर उनपर दोहरे मापदंड क्यों लागू किये जा रहे हैं? क्या नियोक्ता निर्धारण की मांग गलत है?

प्रदेशभर में जुलाई 2017 से ग्राम सेवा सहकारी समितियों में सोसाइटी स्तर पर मुख्य कार्यकारी की भर्ती पर रोक लगी हुई है। जब राज्य सरकार या सहकारिता विभाग नियोक्ता ही नहीं है, तो उसने यह रोक किस हैसीयत से लगायी? पैक्स यदि स्वायत्तशासी संस्थान है, तो फिर सहकारी भर्ती बोर्ड ही पैक्स में मुख्य कार्यकारी की भर्ती क्यों करेगा? वैसे तो सहकारी भर्ती बोर्ड का गठन ही अवैधानिक और सहकारिता की विकेंद्रीयकरण की भावना के ठीक उलट है। जब ‘सहकार से समृद्धि’ की बात हो रही है तो क्या इसमें पैक्स कार्मिकों की समृद्धि शामिल नहीं है। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के शुभ अवसर पर हमें किसानों के कल्याण के लिए तत्पर, पैक्स कार्मिकों के कल्याण के बारे में भी सोचना चाहिये। क्या भारत के सबसे प्रभावशाली आंदोलन की पताका उठाये, पैक्स कर्मचारी जीवनपर्यन्त असंगठित क्षेत्र का ही अंग बने रहेंगे। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से आग्रह है कि एक बार इनके बारे में मनोयोग से सोचियेगा। जय सहकार। (ये सम्पादकीय “सहकार गौरव”  के 01.02.2025 के अंक में प्रकाशित किया गया है)

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