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हाईकोर्ट ने संचालक मंडल के चुनाव में अयोग्यता सम्बंधी उपनियम को असंवैधानिक बताते हुए खारिज किया

नामांकन पत्र खारिज करने के निर्वाचन अधिकारी के आदेश को निरस्त कर याची को चुनाव में भाग लेने की इजाजत दी

जोधपुर, 21 मई (मुखपत्र)। राजस्थान उच्च न्यायायल, जोधपुर के जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण की एकल पीठ ने प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक लिमिटेड के संचालक मंडल के चुनाव में अयोग्यता निर्धारित करने सम्बंधी संस्था के उपनियमों में खंड 26ए(6) (जिसके तहत किसी सदस्य को निर्धारित अवधि में ऋण नहीं लिये जाने पर चुनाव के अयोग्य घोषित किया गया है) को राजस्थान सहकारी सोसाइटी अधिनियम 2001 की शक्ति के दायरे से बाहर माना है। अदालत ने उपनियमों में खंड 26ए(6) को राजस्थान सहकारी सोसाइटी अधिनियम 2001 के प्रावधान के विरुद्ध घोषित करते हुए उक्त उपनियम को असंवैधानिक करार दिया और इसे खारिज कर दिया।

अदालत ने हनुमानगढ़ जिले के गणेशाराम खाती (राज्य सहकारिता सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी) की याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने उपनियमों के खंड 26ए(6) के तहत गणेशाराम को हनुमानगढ़ प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक लिमिटेड के संचालक मंडल के अयोग्य घोषित किये जाने के निर्वाचन अधिकारी के निर्णय को निरस्त करते हुए गणेशाराम को इस चुनाव में भाग लेने की इजाजत दे दी।

प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक लिमिटेड, हनुमानगढ़ की चुनाव प्रक्रिया जून 2023 में आरम्भ हुई थी। इसमें गणेशाराम खाती डेलिगेट बॉडी के सदस्य चुने गये थे, जिसके उपरांत उन्होंने संचालक मंडल के सदस्य के निर्वाचन के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया था। निर्वाचन अधिकारी ने उपनियमों के खंड 26ए(6) का हवाला देते हुए खाती का नामांकन पत्र खारिज कर दिया।

उपनियम 26ए(6) कहता है कि उसने (ऋणी ने) निर्वाचन की तिथि के वित्तीय वर्ष की 1 अप्रेल में तुरंत पूर्व समाप्त हुए, पांच वित्तीय वर्ष की अवधि में बैंक से ऋण न लिया हो, (यहां ऋण लेने का तात्पर्य होगा -इस अवधि में ऋण या ऋण की किश्त का बैंक से आहरण किया गया हो, ऋण स्वीकृति की तारीख ऋण लेने की तारीख नहीं मानी जायेगी)। निर्वाचन अधिकारी के इस निर्णय को गणेशाराम द्वारा उच्च न्यायालय में चुनौती दिये जाने पर हाईकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ ने गणेशाराम को संचालक मंडल के चुनाव में भाग लेने की इजाजत दी और याचिका का निस्तारण होने तक, मतगणना पर रोक लगा दी गयी थी।

नामांकन पत्र खारिज कर दिया गया था

16 मई 2025 को गणेशाराम की याचिका का निस्तारण करते हुए जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण की अदालत ने, संचालक मंडल के सदस्यों के निर्वाचन की योग्यता और अयोग्यता खंड में, अयोग्यता से सम्बंधित उपनियम 26ए(6) को खारिज करते हुए कहा कि निर्वाचन अधिकारी के 28 जून 2023 के आदेश को निरस्त कर दिया गया है, इसलिए वादी (गणेशाराम) को चुनाव में भाग लेने की इजाजत दी जाती है। अदालत ने मतगणना पर लगायी गयी रोक को हटाते हुए निर्देश दिया कि शेष चुनाव प्रक्रिया पुन: आरंभ कर मतगणना करायी जाये।

मथुरालाल नागदा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य का हवाला दिया

याचिका में अयोग्यता सम्बंधी उपनियम खंड 25ए(6) बनाये जाने की सोसाइटी की शक्तियों को चुनौती दी गयी थी। उक्त बायलॉज की शर्त के अनुसार निदेशक मंडल के पद के लिए चुनाव लडऩे वाले व्यक्तिको वित्तीय वर्ष की 1 अप्रैल से ठीक पहले पिछले पांच वित्तीय वर्षों में संबंधित बैंक/सोसायटी से ऋण प्राप्त करना आवश्यक है।

याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया, “इसी तरह की स्थिति, इसी तरह की सोसायटी में थी और इस तरह के उप-कानूनों को इस न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी और इस न्यायालय ने एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 12195/2023 : मथुरालाल नागदा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य में पारित आदेश दिनांक 02.12.2023 के माध्यम से इस तरह के उप-कानून की शर्त को खारिज कर दिया। वर्तमान मामले में भी यही नियम लागू होगा।”

सोसाइटी को अनुसूची-बी में शामिल विषयों के सम्बंध में ही उपनियम बनाने का अधिकार

अदालत द्वारा, पुखराज मेहता और रूपनगर (सुप्रा) केस में दिये गये निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा गया कि सहकारी समिति को राजस्थान सहकारी सोसाइटी अधिनियम 2001 की अनुसूची-बी में शामिल विषयों के सम्बंध में उपनियम बनाने का अधिकार है। 2001 के अधिनियम में संलग्न अनुसूची-बी में निम्नलिखित प्रावधान हैं :-

शिड्यूल-बी

उपनियमों की विषय-वस्तु

(1) सहकारी समिति के उपनियम निम्नलिखित मामलों के लिए प्रावधान करेंगे, अर्थात :-

(क) समिति का नाम और पता;

(ख) इसके संचालन का क्षेत्र;

(ग) समिति के उद्देश्य;

(घ) वह तरीका जिससे निधि जुटाई जा सकती है और अधिकतम शेयर-पूंजी जो एक सदस्य रख सकता है;

[(घ) समिति की सेवाओं के न्यूनतम आवश्यक उपयोग या समिति की बैठकों में न्यूनतम आवश्यक उपस्थिति या समिति के साथ अन्य व्यवहारों के संबंध में मानदंड, जिन्हें सदस्य द्वारा पूरा किया जाएगा।]

(ङ) सदस्यों की देयता की प्रकृति और सीमा;

(च) समिति किस सीमा तक निधि उधार ले सकती है और ऐसी निधियों पर देय ब्याज की दरें; (टी) अध्यक्ष की शक्तियांं, कर्तव्य और कार्य तथा बहुमत का समर्थन खोने पर उसे हटाया जाना; (यू) वार्षिक और विशेष आम बैठकें बुलाने का तरीका, नोटिस जारी करना और उनमें किए जाने वाले कार्य; (वी) किसी अन्य सोसायटी में प्रतिनिधि भेजना; (डब्ल्यू) उसके कार्य के प्रबंधन से सम्बंधित कोई अन्य मामले।

इन मामलों में बनाये जा सकते हैं उपनियम

अदालत ने कहा, “सोसायटी निम्नलिखित मामलों के लिए उपनियम बना सकती है”, अर्थात:- (ए) भर्ती की विधि, सेवा की शर्तें और सोसायटी के वेतनभोगी अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतनमान और भत्ते तय करने, संशोधित करने या विनियमित करने के लिए सक्षम प्राधिकारी और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक मामलों के निपटान में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया; (बी) वे परिस्थितियां जिनके तहत सदस्यता से वापसी की अनुमति दी जा सकती है;

(सी) सदस्यों की वापसी, अयोग्यता और मृत्यु के मामले में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया; (घ) वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अंतर्गत किसी सदस्य के शेयर या हित का हस्तांतरण करने की अनुमति दी जा सकती है; (ङ) उन सदस्यों द्वारा किए गए भुगतानों को विनियोजित करने की विधि, जिनसे धन प्राप्त होना है; (च) किसी अधिकारी या अधिकारियों को दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने और सोसायटी की ओर से मुकदमों और अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने और उनका बचाव करने की शक्तियाँ।

अयोग्यता से सम्बंधित उपनियम बनाने का अधिकार नहीं

अदालत ने कहा, “उपरोक्त अनुसूची के मात्र अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें सहकारी समिति/बीओडी के सदस्य की योग्यता या अयोग्यता से संबंधित कोई उपनियम बनाने का प्रावधान नहीं है। जैसा कि रूपनगर के मामले (सुप्रा) में माना गया है, सहकारी समिति को उन विषयों के संबंध में उपनियम के माध्यम से शर्त लगाने से रोका गया है, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा अधिनियम 2001 की धारा 123 के तहत अपने नियम बनाने की शक्ति के तहत विशेष रूप से निपटाया जाना है।”

उपनियम 26ए(6) असंवैधानिक

अदालत ने कहा, “पुखराज मेहता और रूप नागर (सुप्रा) के मामलों में निर्धारित कानून की स्थापित स्थिति को देखते हुए, इस न्यायालय का स्पष्ट मत है कि विचाराधीन उपनियमों का खंड 26ए(6) उक्त निर्णयों में निर्धारित अनुपात से प्रभावित है। उपनियमों के खंड 26ए(6) के तहत निर्धारित अयोग्यता सोसायटी/बैंक की उपनियम बनाने की शक्ति के दायरे से बाहर है, इसलिए इसे 2001 के अधिनियम के प्रावधान के विरुद्ध घोषित किया जाता है। उक्तउपनियम को असंवैधानिक माना जाएगा।”

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