सहकारिता

पैक्स कर्मियों का नया संगठन बनाने का निर्णय स्वागत योग्य कदम

राजस्थान की साढ़े सात हजार से अधिक ग्राम सेवा सहकारी समितियों (पैक्स, लैम्पस) में करीब चार हजार व्यवस्थापकों, सहायक व्यवस्थापकों को मिलाकर, 15 हजार से अधिक कार्मिक कार्यरत हैं। लेकिन संगठनों में मत विभिन्नता, पदलोलुपता और एकजुटता के अभाव में इनकी मांग पर न तो राज्य सरकार, न ही सहकारिता विभाग या जिला केंद्रीय सहकारी बैंक ध्यान देते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘सहकार से समृद्धि’ की परिकल्पना में पैक्स की महत्वपूर्ण भूमिका है, परन्तु फूट के कारण, राजस्थान की पैक्स (PACS) और पैक्स कर्मचारी, दोनों बेहाल हैं। इनकी नियोक्ता निर्धारण, कॉमन कैडर, नियमितिकरण और रिक्त पदों पर भर्ती की मांग वर्षों से नक्कारखाने में तूती की भांति गूंज रही है। कोराना वायरस संक्रमण के अत्यंत विकट हालात और जान जोखिम में डालकर काम करने के बावजूद सरकार ने पैक्स कार्मिकों को कोरोना वॉरियर नहीं माना, जिसके चलते कोरोना में ड्यूटी करते हुए जान गंवाने वाले सहकार कार्मिकों को सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज का लाभ नहीं मिला।

राज्य में आधे से अधिक पैक्स, लैम्पस में मुख्य कार्यकारी यानी व्यवस्थापक/सहायक व्यवस्थापक के पद रिक्त हैं। कई जिलों में हालात इतने बदतर हैं कि एक-एक व्यवस्थापक के पास चार, पांच, यहां तक कि छह ग्राम सेवा सहकारी समितियों का अतिरिक्त चार्ज है। कर्मचारियों में एकता नहीं होने के कारण तथा सहकार कार्मिकों की आवाज बुलंद करने वाला मजबूत संगठन नहीं होने के कारण पिछले दो साल से हालात बहुत खराब हो रखे हैं। अल्पकालीन फसली ऋण वितरण की एजव में मिलने वाले ब्याज अनुदान में अत्यधिक विलम्ब के कारण, कहीं छह माह से तो कहीं दो साल से पैक्स कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा, लेकिन सरकार, विभाग व सहकारी बैंकों का प्रेशर इतना अधिक है कि सोसाइटियों के काम का नियमित रूप से संचालन हो रहा है। साल भर पहले, नये संचालक मंडल के अस्तित्व में आने से भी कर्मचारियों को नौकरी गंवानी पड़ी है। वहीं, कहीं-कहीं वित्तीय अनुशासन भंग होने से ग्राम सेवा सहकारी समितियों की साख को झटका लगा है एवं व्यवस्थापक कौम को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। विधानसभा के बजट सत्र में अधिकांश विधायकों ने ग्राम सेवा सहकारी समितियों में गबन, घोटालों की ही चर्चा की। इन सब के पीछे बड़ा कारण यही रहा कि सहकार कर्मियों का अपना मुखर रहनुमा नहीं है।

1 अगस्त से 11 अगस्त तक, प्रदेशभर में पैक्स कर्मियों की एकता के लिए जो सुखद घटनाक्रम हुआ, उसका भविष्य में सकारात्मक परिणाम आने की संभावना है। जयपुर में आयोजित पैक्स कर्मियों की बैठक में एकता के सुर सुनाई दिये, जिससे पूरी कौम में उत्साह का संचार हुआ है। राजस्थान सहकारी कर्मचारी संघ के तीन गुटों में से दो गुटों ने स्वेच्छा से अपने पद त्याग दिये और टीएसपी संघर्ष समिति ने भी प्रदेशस्तर पर मजबूत संगठन और फिर बड़ा आंदोलन शुरू करने के इरादे से, संघर्ष समिति का नये संगठन में विलय की औपचारिक घोषणा कर दी है। यदि, सब कुछ अपेक्षा के अनुरूप रहा तो अतिशीघ्र एक नया संगठन अस्तित्व में आयेगा और सहकार कर्मियों की आवाज प्रदेशभर में बुलंद होगी। नये संगठन का निर्णय निश्चित तौर पर स्वागत योग्य है। उन लोगों के पास अभी अवसर है, जो पद लोलुपता के कारण एक प्रदेश, एक संगठन की राह में रोड़ा बने हुए हैं। उन्हें भी निजी स्वार्थों को त्यागकर, साथियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एकजुटता प्रदर्शित करनी चाहिये। क्योंकि कलयुग में संगठन में शक्ति होती है। एक मजबूत संगठन होगा, तो सबका भला होगा। जय सहकार।

– मनीष मुंजाल, सम्पादक 90011-56755 mukhpatrajpr@gmail.com

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