राज्य सहकारी बैंक सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र, सेवा विवाद हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला, कर्मचारी की सर्विस याचिका खारिज की
श्रीनगर, 26 अप्रेल। जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड स्वायत्त निकाय है, जिसका सरकार द्वारा कोई व्यापक या गहरा नियंत्रण नहीं है। इसलिए बैंक के कार्य निजी कानून के दायरे में आते हैं, जिसमें इसके कर्मचारियों के साथ सेवा विवाद भी शामिल है। इसलिए उक्त याचिका न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं हैं। उप महाप्रबंधक गुलाम रसूल डार द्वारा दायर सर्विस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया गया, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर सहकारी समिति अधिनियम (सीएसए) के तहत रजिस्टर्ड बैंक द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसने उनकी निलम्बन अवधि को अवकाश माना था।
याचिकाकर्ता को 1986 में बैंक में क्लर्क के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में 1993 में सहायक लेखाकार के पद पर पदोन्नत किया गया। 2016 में उसे निलम्बित कर दिया गया और प्रतिवादी द्वारा चार्जशीट किया गया। याचिकाकर्ता ने इस कार्रवाई को रिट याचिका के जरिए चुनौती दी। उन्होंने चार्जशीट का जवाब दिया और उन्हें बहाल कर दिया गया, लेकिन जांच के परिणाम के बारे में उन्हें सूचित नहीं किया गया। याचिकाकर्ता 2018 में सेवानिवृत्त हुए और उन्हें 2017 से उप महाप्रबंधक के पद पर पूर्वव्यापी रूप से पदोन्नत किया गया। हालांकि, रिट याचिका के लम्बित होने के कारण उनके सेवानिवृत्ति लाभ जारी नहीं किए गए।
इसके बाद प्रतिवादियों ने उनका अवकाश वेतन और ग्रेच्युटी जारी कर दी, लेकिन उनकी निलम्बन अवधि को अवकाश के रूप में मानने के निर्णय की समीक्षा नहीं की, जिसके कारण उन्हें वर्तमान रिट याचिका दायर करने के लिए प्रेरित किया गया। याचिका पर प्रारम्भिक आपत्ति उठाते हुए प्रतिवादी बैंक ने कहा कि सहकारी समिति होने के नाते स्वायत्त संस्था है, जिसके मामलों को सरकार के नियंत्रण के बिना निर्वाचित निदेशक मंडल द्वारा नियंत्रित किया जाता है। बैंक के कर्मचारियों की सेवा की शर्तें बैंक के निदेशक मंडल द्वारा उपनियमों के अनुसार अनुमोदित नियमों द्वारा शासित होती हैं। इस प्रकार, याचिकाकर्ता और प्रतिवादी बैंक के बीच विवाद रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं है।
वादी ने वकील ने दिया ये तर्क
इसके विपरीत सीनियर एडवोकेट जहांगीर इकबाल गनाई ने तर्क दिया कि प्रतिवादी बैंक भले ही सहकारी समिति के रूप में रजिस्टर्ड है, प्रभावी रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित है, क्योंकि सरकार के पास बैंक के निर्वाचित बोर्ड को नियमों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर सहकारी समिति अधिनियम में निहित प्रावधान के तहत अधिक्रमण करने की शक्ति है। बैंक के मामलों पर सरकार का व्यापक नियंत्रण है और यह बैंक की शेयर पूंजी के निश्चित प्रतिशत का मालिक है। इस तरह, यह नहीं कहा जा सकता कि बैंक के मामलों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
को-ऑपरेटिव एक्ट में रजिस्टर्ड बैंक का स्वतंत्र अस्तित्व
जस्टिस संजय धर ने पीठ की अध्यक्षता करने वाले कहा कि बैंक कानून का प्राणी नहीं है, न ही उसके पास वैधानिक शक्ति है, जो इसे ‘राज्य’ के रूप में योग्य बनाती है। सीएसए के तहत रजिस्टर्ड सोसायटी के रूप में बैंक का स्वतंत्र अस्तित्व है। इस तरह, संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ में इसे ‘राज्य या राज्य का साधन’ नहीं कहा जा सकता। पीठ ने कहा, ‘प्रतिवादी बैंक के पास सरकार की चिंता करने वाली उपस्थिति नहीं है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार का उस पर व्यापक नियंत्रण है।’
बोर्ड के सरकारी सदस्यों का केवल मनोनयन
अदालत ने कहा कि कुछ स्थितियों में सरकार सहकारी समिति के सदस्यों के लिए योग्यता और अयोग्यता निर्धारित कर सकती है और इसकी शेयर पूंजी में योगदान कर सकती है। सरकार या रजिस्ट्रार के पास निर्वाचित बोर्ड को हटाने और उसके स्थान पर अस्थायी बोर्ड को नामित करने की भी शक्ति है। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार बैंक की शेयर पूंजी में 25 प्रतिशत से अधिक का योगदान नहीं कर सकती है और सरकार या समाज के पास सरकारी अंशदान को 25 प्रतिशत से भी कम करने की शक्ति है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बैंक के निदेशक मंडल के कामकाज पर सरकार का अत्यधिक नियंत्रण नहीं है। अदालत ने कहा कि 13 सदस्यों में से केवल सरकारी नामित बोर्ड में है, जिसका अर्थ है कि बैंक के मामलों पर सरकार का कोई गहरा और व्यापक नियंत्रण नहीं है।
सहकारी बैंक पर सरकार का व्यापक नियंत्रण नहीं
अदालत ने कहा, ‘एक्ट (सीएसए) के प्रावधान प्रतिवादी बैंक के निदेशक मंडल में सरकारी सदस्य के नामांकन के लिए भी प्रदान करते हैं। यह भी प्रदान किया जाता है कि सरकार के सम्बंध में सहकारी समिति लोन, अनुदान और लोन के पुनर्भुगतान की गारंटी दे सकती है। लेकिन फिर ये परिस्थितियां इस बात का संकेत नहीं देती कि प्रतिवादी बैंक के मामलों पर सरकार का गहरा और व्यापक नियंत्रण है।’ जस्टिस धर ने याचिकाकर्ता की सेवा शर्तों के सम्बंध में कहा कि वे जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक कर्मचारी सेवा नियम, 2012 द्वारा शासित हैं, जिसे बैंक ने बायलॉज 35 के संदर्भ में अपनाया है। हालांकि, अदालत ने माना कि सहकारी समिति द्वारा बनाए गए उपनियम बेंच ने स्पष्ट किया कि सीएसए के तहत रजिस्टर्ड लोगों के पास कानून का बल नहीं है और वे सोसायटी और उसके सदस्यों के बीच अनुबंध की प्रकृति के हैं।
सोसायटी और सदस्यों के बीच अनुबंध की प्रकृति
जस्टिस धर ने कहा, ‘ये सोसायटी और उसके सदस्यों के बीच अनुबंध की प्रकृति में हैं। इसलिए उपनियमों द्वारा शासित सोसायटी के कर्मचारियों की सेवा शर्तों को रिट याचिका के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता है।’ यह देखते हुए कि सार्वजनिक कानून के दायरे में आने वाले मामलों के सम्बंध में बैंक के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य हो सकती है।
याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना
हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि बैंक और उसके कर्मचारियों के बीच सेवा विवाद सहित न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार के लिए निजी कानून के दायरे में आने वाली कार्रवाइयां उत्तरदायी नहीं हैं। उक्त कानूनी स्थिति को देखते हुए खंडपीठ ने 13 अप्रेल 2023 को याचिका को सुनवाई योग्य न पाते हुए खारिज कर दिया। केस टाइटल : गुलाम रसूल डार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य सहकारी बैंक, जेकेएल 95/2023 (इनपुट – लाइवलॉ)