स्क्रीनिंग प्रकरण – शासन व्यवस्था बदलने के साथ ही साथी अधिकारियों के प्रति बदल गयी जिम्मेदारों की सोच
जयपुर, 23 मई (मुखपत्र)। प्रदेश में शासन व्यवस्था बदल जाने के साथ ही, उच्च पद आसीन अफसरों की सोच अपने ही साथियों के प्रति कैसे बदल जाती है, इसकी बानगी देखनी हो तो सहकारिता विभाग में चले आईये। स्क्रीनिंग प्रक्रिया की जांच को लेकर इन दिनों जो नाटक मंचित हो रहा है, वो सौम्य मुस्कान के साथ मासूम दिखने वाले कई जिम्मेदार चेहरों की कुलिटता को सामने लाना वाला है।
विभाग के ही कतिपय अतिमहत्वाकांक्षी अफसरों द्वारा करवायी गयी पेपरबाजी के बाद, केंद्रीय सहकारी बैंकों में ग्राम सेवा सहकारी समितियों (पैक्स और लैम्पस) में मुख्य कार्यकारी (व्यवस्थापक/सहायक व्यवस्थापक) पद पर नियमितिकरण की अनुशंसा के लिए अगस्त 2022 में सम्पन्न हो चुकी स्क्रीनिंग प्रक्रिया की जांच आरम्भ हो गयी है। शीर्ष पदों पर काबिज चंद अफसर, जिन्हें मंत्री और ब्यूरोक्रेट्स को बरगलाने में महारथ है, ने इस बार, संवेदनशीलता और सकारात्मकता से परिपूर्ण शासन सचिव को भी नहीं बख्शा और उनके समक्ष आधे-अधूरे तथ्य प्रस्तुत कर, स्क्रीनिंग प्रक्रिया की जांच के लिए राज्य स्तरीय कमेटी का गठन करवा लिया गया, लेकिन अध्यक्ष वही अफसर बनने में सफल हुए हैं, जो कुछ पिछली सरकार के कार्यकाल में, राज्य विधानसभा में सहकारिता मंत्री के हाथों साफ-सुथरी और नियमानुकूल स्क्रीनिंग प्रक्रिया पूर्ण होने का प्रमाण पत्र बंटवा चुके हैं।
15वीं राज्य विधानसभा के अष्टम सत्र में, विधायक रामलाल शर्मा ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से ग्राम सेवा सहकारी समितियों के मुख्य कार्यकारी पद के लिए स्क्रीनिंग में अनियमितता का मुद्दा उठाया था, लेकिन तब विधानसभा में सहकारिता मंत्री से कहलवाया गया कि कोई अनियमितता नहीं हुई और जोनल एडिशनल रजिस्ट्रार द्वारा गठित एक कमेटी द्वारा आवेदन पत्रों की जांच के उपरांत ही, स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक का आयोजन किया गया, जिसके द्वारा पात्र व्यक्तियों के ही नियमितिकरण की अनुशंसा की गयी। इसके आधार पर विधायक का ध्यानाकर्षण प्रस्ताव खारिज कर दिया गया।
अब सरकार के बदलने के बाद, जालौर प्रकरण के मद्देनजर, फिर से तरकश में तीर भरे गये हैं। तत्कालिन सहकारिता मंत्री के निर्देश के उपरांत एवं तत्कालिन रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां, राजस्थान द्वारा जारी कार्यक्रम की पालना में, स्क्रीनिंग प्रक्रिया को सम्पादित करने वाले जोनल एडिशनल रजिस्ट्रार और केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रबंध निदेशकों को निशाने पर लिया जा रहा है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि, स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा, उसके समक्ष प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर साक्षात्कार लेकर, नियमितिकरण की अनुशंसा की जाती है और स्क्रीनिंग के लिए प्राप्त होने वाले आवेदनों की पात्रता की जांच, बैंक के अधिशासी अधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा किये जाने का नियम है, लेकिन 26 बिन्दुओं का जो अतिविस्तृत और कलिष्ठ प्रपत्र जारी किया गया है, उनमें इस बिन्दू को शामिल ही नहीं किया गया, जो यह साबित करता है कि निशाने पर जोनल एडिशनल और चुनिंदा प्रबंध निदेशक ही हैं।
भर्ती को लेकर मंत्री की भद्द पिटवायी
ठीक ऐसे ही, तत्कालिन सहकारिता मंत्री उदय लाल आंजना से अपेक्स बैंक व केंद्रीय सहकारी बैंकों में रिक्त पदों पर अतिशीघ्र भर्ती की अनेक बार घोषणा करवा कर, सडक़ से लेकर विधानसभा में उनकी भद्द पिटवायी गयी। सहकारी भर्ती बोर्ड के कर्ताधर्ता द्वारा भर्ती की फाइल को गेंद बनाकर, नये-नये बहानों के साथ, मार्गदर्शन के लिए राज्य सरकार को भिजवाया जाता रहा और यह काम इतनी चालाकी से किया गया कि मंत्री चाहकर भी, न तो भर्ती की प्रक्रिया शुरू करवा सके और न ही कर्ताधर्ता का बाल बांका कर सके।
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