सहकारिता

कहि-सुनी : इक बंगला बनेगा न्यारा, सुंदर प्यारा-प्यारा

सहकारी आंदोलन और सहकारिता विभाग का ध्येय वाक्य है – ‘एक सबके लिए, सब एक के लिए’। हाल के वर्षों में जबसे सहकारी संस्थाओं में तकनीकी युग की शुरूआत हुई है, तबसे तकनीक बेचने वाले एवं इसका उपयोग करने वाली संस्थाओं तथा तकनीकी सेवा देने वाले और सेवा लेने वालों ने इस ध्येय वाक्य को काफी गंभीरता से ले लिया है और सब एक-दूसरे के लिये अतुलनीय सहकार सहयोगी सिद्ध हो रहे हैं। तकनीकी अपग्रेडेशन के इस दौर में सहकारिता के शीशमहल में तकनीकी सैल से जुड़े चंद सहकारी भाई, ए.सी. दफ्तरों में बैठे-बैठे गंगा नहा लिये हैं। कईयों ने तो गंगासागर नहा लिया, क्योंकि उन्हें मालूम है कि सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार। बहरहाल, गंगासागर का स्नान करने वाले तो अपना कार्यकाल पूर्ण कर शीशमहल से विदा हो गये, लेकिन पीछे अपनी बिगड़ैल औलादें छोड़ गये, वैसे ही जैसे देश की आजादी के बाद अंग्रेज तो भारत छोड़ कर चले गये, लेकिन अंग्रेजी कानून और लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति छोड़ गये।

गंगासागर नहाने वाले गुरु के खास चेले ने, गुरु के कार्यकाल में आयी तकनीकों को अपग्रेड करने और फिर नयी-नयी तकनीकों को अपनाने की प्रक्रिया में गंगासागर का स्नान करने की तैयारी कर ली है। यूं समझिये कि कोलकाता तक तो पहुंच ही गये हैं, अब केवल डायमंड हार्बर और काकद्वीप को पार करना है। जिस दिन, चार्मिंग पर्सनल्टी वाले शीशमहल के एक पूर्व अफसर (जो छोटे नवाब के बॉस रह चुके हैं) जैसा, आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त सुपर लग्जीरियस हाउस बनकर तैयार हो जायेगा, तो सपरिवार कचुबेरिया द्वीप पहुंचकर गंगासागर तीर्थ में स्नान जैसा पुण्य अर्जित कर लेंगे। छोटी संस्थाओं मेें पारदर्शिता लाने के नाम पर तकनीक को अपनाने वाले काम में ‘स्कोप’ ही इतना है कि छोटे नवाब अपने दिल पर काबू नहीं रख पाये और शिव की प्रसिद्ध नगरी के नाम वाली सरकारी कॉलोनी में अपने जिस आवास में अगले कई साल तक सुकून भरा जीवन व्यतीत कर सकते थे, बड़ा दिल दिखाते हुए उस पर बुलडोजर चला दिया।

वैसे, इस बात में कोई शक नहीं कि छोटे नवाब हैं बड़े दिल वाले, क्योंकि उनकी देखरेख में कभी हॉस्पिटल को 1 लाख 40 हजार की जगह 1 करोड़ 40 लाख रुपये का भुगतान हो जाता है तो कभी और भी बड़ा दिल दिखाते हुए धरतीपुत्रों को 14 करोड़ की जगह 28 करोड़ रुपये का भुगतान कर देते हैं। छोटे नवाब ये भलि-भांति जानते हैं कि इस महकमे में ‘अंधा पीसे, कुत्ता खाये’ वाली स्थिति है। यहां कोई कुछ भी कर जाये, होना-हवाना तो कुछ है नहीं। पहले 1.40 लाख के बदले 1.40 करोड़ के लिए बृजपर्वत की भांति कठोर इंद्र नुमा मुखिया ने भले ही 16 सीसीए का प्रेमपत्र थमा दिया था, लेकिन अब 14 की जगह 28 करोड़ वाले मामले में समदर्शी मुखिया तो छोटे नवाब को एक नोटिस तक नहीं दे पाये और सारा ठिकरा नीचे वालों के सिर फोड़ते हुए उन्हें रूल 17 के पांच प्रेम पत्र थमा दिये, वो भी बिना नोटिस दिये। ताकि, डूंगला सरकार को यह दर्शा सकें कि हमने तो अनुशासन का डंडा चला दिया।

सुना है कि छोटे नवाब के कारनामों के प्रति समदर्शी मुखिया के सॉफ्ट बिहेवियर के दो बड़े कारण हैं। पहला, एक तकनीकी सेव और दूसरा, सहकार भवन के सामने सीना ताने खड़ी एक नेशनल चेन वाली भव्य बिल्डिंग में विदाई, जिसकी व्यवस्था छोटे नवाब ने शीशमहल की दो नम्बर वाली बिल्डिंग में बनी कोहरे की दीवार से करवायी है। इसी के चलते समदर्शी मुखिया, छोटे नवाब के कारनामों के प्रति आंखें मूंद कर, स्थिरचित्त भाव से प्रसन्न मुद्रा में बैठा है। जिसे भोजन के अंत में 70 रुपये किलो वाले बताशे की उम्मीद नहीं हो, उसे पचास हजार रुपये किलो कीमत वाली एग्जॉर्टिका* मिल जाये, तो वो तो बावला हो ही जायेगा। इसी बावलेपन में ‘900 चूहे खाकर हज करने वाली’ तोपखाना शहर की सयानी बिल्ली चोसा के भिश्ती निजाम की भांति परचेज कमेटी के बिना ही, कई करोड़ रुपये के सामान खरीदने के टैंडर करने जैसे चमड़े के सिक्के हर रोज चला रही है।

छोटे नवाब के सुंदर नाम का उपयुक्त अर्थ नई ब्याई हुई यानी नवप्रसूता गाय के प्रथम से सातवें दिन तक का दूध होता है, जिसे आयुर्वेद शास्त्र में रूखा, दाहकारक, रक्त को कुपित करनेवाला और पित्तकारक माना गया है। साधारणत: ऐसा दूध लोग नहीं पीते क्योंकि वह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक माना जाता है। छोटे नवाब के घरवालों ने उनका ऐसा नाम इसीलिये रखा है, क्योंकि इन्हें पता था कि छोटा नवाब, भविष्य में अपने रुखे, दाहकारक स्वभाव से संस्थान के भविष्य को कुपित करने वाला साबित होगा। ‘पूत के पांव पालने में देखना’ इसी को कहते हैं। लाल रंगयुक्त नोट पकडऩे वाले महकमे ने, विगत दिनों में यदि, मुखिया के स्थान पर छोटे नवाब पर हाथ डाला होता तो आज उनकी जय-जयकार हो रही होती।

*एग्जॉर्टिका एक बहुत महंगी मिठाई है, जो लखनऊ कैंट के सदर बाजार में मिलती है।

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