मुखपत्र

कहि-सुनी : बड़े साहब के दत्तक पुत्र की पिंक सिटी से विदाई

मन और वाणी की अशुद्धता से अपने मातहतों, विशेषकर महिला अफसरों को टारगेट करने वाले, को-ऑपेरिटव कमांड सेंटर के एक बड़े साहब की टीम के विकेट गिरने शुरू हो गये हैं। शुरूआत, दत्तक पुत्र से हुई है, जो बड़े साहब के लिए ‘संजय’ की भूमिका निभा रहे थे।

सहकारिता के शीशमहल का यह चतुर-सुजान कार्मिक बड़े साहब को बड़ा प्रिय है। लम्बे समय तक कमांड सेंटर में तैनात रहने के कारण, बड़े साहब क कृपादृष्टि से बड़े-बड़े लोगों के साथ उठने-बैठने लगे। कमांड सेंटर के गलियारों से लेकर सहकारिता के शीशमहल तक इसकी गिनती बड़े साहब के दत्तक पुत्र के रूप होती है। पहले शीशमहल में ही विराजा करते थे और खान-पान की व्यवस्था देखते थे। श्रीमद्भागवत गीता में उल्लेख है कि, जिस प्रकार सारथी संजय ने महाभारत युद्ध का प्रत्यक्ष वृतांत (आज की भाषा में लाइव टेलिकास्ट) हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र को सुनाया था, उसी प्रकार से, शीशमहल की घटनाओं का वृतांत भी, ये दत्तक पुत्र, अपने ग्रुप के सदस्यों से फीड बैक लेकर बड़े साहब को सुनाया करता था।

बड़े साहब ने इन दिनों शीशमहल के मुखिया पर अपनी भृकुटी डेढ़ी कर रखी है। मुखिया जी को निबटाने के लिए बड़े साहब ने दत्तक पुत्र को अग्रिम मोर्चा पर तैनात किया था। उनकी एक-एक हरकत और पुरानी फाइलों को खंगालने में दत्तक पुत्र ने सक्रिय योगदान दिया। बड़े साहब की अपार कृपा से दत्तक पुत्र आज तक मनमाफिक पदों पर ही रहा और इसी अहम-वहम में बैंक प्रबंधन की नाक में कानूनी नकेल डालने से कभी पीछे नहीं हटे।

शीशमहल वाले साहब अपेक्षाकृत शांत किस्म के हैं और काफी लिबरल भी हैं, लेकिन सब्र नाम की भी कोई चीज होती है। गले तक पानी आया, फिर भी वे शांत रहे, लेकिन जब साजिशों का पानी नाक में घुसने को तैयार हो गया और दम घुटता प्रतीत हुआ तो, उन्हें भी अपने को सुरक्षित रखने का जाब्ता करना पड़ा। मुखिया को जब दत्तक पुत्र की भूमिका के बारे में कन्फर्म हो गया, तो उन्हें दत्तक पुत्र को बाहर का रास्ता दिखाना ही पड़ा।

वैसे तो यह माना जाता है कि दत्तक पुत्र बड़ा तिकड़मी और खांट किस्म का है, लेकिन बड़े साहब तो बड़े साहब ठहरे। वे तो ब्यूरोक्रेट्स की अक्ल निकालने में भी मास्टरमाइंड हैं, ऐसे में दत्तक पुत्र की क्या बिसात। बड़े साहब की बातों में आकर दत्तक पुत्र ने स्वयं को प्रत्यक्ष रूप में झोंक दिया। उसकी इन हरकतों से रेड-येलो हुए शीशमहल वाले मुखिया को बड़े साहब के दत्तक पुत्र को पिंक सिटी से खदडऩे पर मजबूर होना पड़ा।

सोम प्रदोष व्रत के दिन, साहब के संयम का बांध टूट गया। त्रिनेत्र खुला और दत्तक पुत्र के लिए ऐसी प्रलय आ गयी, जो उन्हें घडिय़ाल सेंचुरी की ओर बहा ले गयी। दत्तक पुत्र के पिछले अनुभवों के आधार पर शीशमहल के कार्मिक इस बात की शर्त लगाते देखे गये कि दत्तक पुत्र चम्बल कोरिडोर देखने की बजाय, कोर्ट में जाने का विकल्प चुनेंगे, लेकिन समय की ठोकर ने समझदार बना दिया। बीमारी के बहाने से दो-तीन दिन छुट्टी पर रहकर हाथ-पांव भी मारे, लेकिन पार नहीं पड़ी तो चुपचाप झोला उठा कर चल दिये।

सोम प्रदोष के शुभदिन में बड़े साहब का पहला विकेट गिरा। ऐसा कहते हैं कि शुभ दिन में अच्छा या बुरा, कोई काम हो तो रिपीट जरूर होता है। अब देखते हैं अगला नम्बर किसका लगता है।

(Photo courtesy iStock credit yayayoyo)

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