सहकारी समितियों के कर्मचारी की सेवानिवृत्ति आयु को लेकर हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
को-ऑपरेटिव सोसाइटी में कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की आयु को लेकर हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। उच्च न्यायायल ने कहा कि, सहकारी ऋण सोसाइटी के प्रबंधन बोर्ड को ही अपने कर्मचारी की सेवानिवृत्ति आयु निर्धारित करने का अधिकार है, सरकार को नहीं। हालांकि, यह निर्णय आंधप्रदेश हाईकोर्ट की ओर से दिया गया है, लेकिन कई बार ऐसा देखने में मिला है कि कतिपय मामलों में किसी भी राज्य के हाईकोर्ट का निर्णय, अन्य राज्यों के उच्च न्यायायलों अथवा निचली अदालतों में, इसी प्रवृत्ति के निर्णय का आधार बन जाता है। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला सहकारी केंद्रीय बैंक लिमिटेड, जो कि एक केंद्रीय सहकारी सोसाइटी होती है, की एक शाखा के कर्मचारियों के सेवा मामले में कहा कि सहकारी ऋण समितियों को सेवानिवृत्ति की आयु तय करने में पूर्ण स्वायत्तता है।
चीफ जस्टिस धीरज सिंह ठाकुर और जस्टिस आर रघुनंदन राव की खंडपीठ ने कहा कि जून 2017 से सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना बैंक के प्रबंधन के दायरे में एक नीतिगत निर्णय था, जबकि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की नौंवी और दसवीं अनुसूचियों में सूचीबद्ध सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थानों को नियंत्रित करने वाले आंध्र प्रदेश लोक रोजगार (सेवानिवृत्ति की आयु का विनियमन) (संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 3(1) के विपरीत यह निर्णय लिया गया है।
खंडपीठ ने कहा, सरकार द्वारा उन संस्थाओं के लिए लिया गया निर्णय जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों, जो सहकारी ऋण समितियां हैं, को बाध्य नहीं करेगा, जिन्हें सेवानिवृत्ति की आयु में विस्तार किया जाना चाहिए या नहीं और यदि किया जाना चाहिए तो किस तिथि से इसका निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र रूप से अपनी वित्तीय क्षमता सहित विभिन्न कारकों पर विचार करने की आवश्यकता होती है।
प्रकाशम जिला सहकारी बैंक के याचिकाकर्ता कर्मचारी वर्ष 2017 तक 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हो चुके थे। वर्तमान रिट याचिका उनके द्वारा इस दलील के साथ दायर की गई कि उन्हें केवल 60 वर्ष की आयु में ही सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए था। उन्होंने तर्क दिया कि बैंक प्रबंधन द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु को केवल भावी रूप से बढ़ाने के अपने निर्णय के आवेदन को प्रतिबंधित करना यानी जून 2017 से, मनमाना था।
वर्ष 2016 में, सरकार द्वारा जीओ नम्बर 112 जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 2014 अधिनियम की संशोधित धारा 3(1), जो सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाती है, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की नौंवी और दसवीं अनुसूचियों में सार्वजनिक उपक्रमों और संस्थाओं पर आंध्र और तेलंगाना के बीच परिसम्पत्तियों और देनदारियों के विभाजन के बाद तक लागू नहीं होगी।
सरकार द्वारा जारी उक्त सरकारी आदेश को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विभिन्न याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई। इस बीच, सरकार ने जीओ नम्बर 102 जारी किया, जिसके तहत उपरोक्त विवादास्पद श्रेणी के कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 60 वर्ष कर दी गई। इसके बाद 2017 में एक और जीओ नम्बर 138 जारी किया गया, जिसके तहत सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि का प्रभाव 02.06.2014 से पूर्वव्यापी रूप से लागू किया गया। नए जीओ का मतलब था कि यदि उक्त श्रेणी के संस्थानों के कर्मचारी 58 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त हो गए हैं, तो उन्हें बहाल किया जाना चाहिए और 60 वर्ष की आयु तक सेवा में बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।
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