Wednesday, October 30, 2024
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सहकारिता

बदलेगी कृषि की सूरत, इफको ने नैनो यूरिया के बाद नैनो डीएपी लॉन्च किया

केंद्रीय सहकारी मंत्री अमित शाह ने नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को क्रांतिकारी बदलाव वाला बताया

नई दिल्ली, 26 अप्रेल। केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में इफको नैनो डीएपी (तरल) का लोकार्पण किया। इस अवसर पर सहकारिता मंत्रालय के सचिव ज्ञानेश कुमार, इफको चेयरमैन दिलीप संघानी, प्रबंध निदेशक डॉ. यू.एस. अवस्थी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

अपने सम्बोधन में अमित शाह ने कहा कि इफको नैनो डीएपी (तरल) प्रोडक्ट की लॉन्चिंग फर्टिलाइजर के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण शुरुआत है। इफको का यह प्रयास सभी राष्ट्रीय सहकारी समितियों को अनुसंधान और नए क्षेत्रों में पदार्पण के लिए प्रेरित करने वाला है। उन्होंने विश्वास जताया कि इफको नैनो डीएपी (तरल) आने वाले दिनों में भारत के कृषि क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाएगा और किसानों की समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान देगा। यह उत्पादन व फर्टिलाइजर के क्षेत्र में भारत को निश्चित रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा।

 

श्री शाह ने कहा कि तरल डीएपी के उपयोग से केवल पौधे पर छिडक़ाव के माध्यम से उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को बढ़ाने के साथ-साथ भूमि का भी संरक्षण किया जा सकेगा। इससे भूमि को फिर से पूर्ववत करने में बहुत बड़ा योगदान मिलेगा और केमिकल फर्टिलाइजर युक्त भूमि होने के कारण करोड़ों भारतीयों के स्वास्थ्य को जो खतरा बन रहा था वह भी समाप्त हो जाएगा।

दानेदार उर्वरकों से बचने की सलाह

अमित शाह ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि वे दानेदार यूरिया व दानेदार डीएपी की जगह तरल नैनो यूरिया व तरल डीएपी का प्रयोग करें, यह उससे अधिक प्रभावी है। दानेदार यूरिया के उपयोग से भूमि के साथ-साथ फसल और उस अनाज को खाने वाले व्यक्ति की सेहत का भी नुकसान होता है।

मिट्टी की उर्वरता प्रभावित नहीं होगी

उन्होंने कहा कि लिक्विड होने के कारण डीएपी से भूमि बहुत कम मात्रा में केमिकल युक्त होगी। प्राकृतिक खेती के लिए महत्वपूर्ण है कि भूमि में केमिकल ना जाए और केंचुओं की मात्रा बढ़े। अधिक संख्या में केंचुए अपने आप में फर्टिलाइजर के कारखाने की तरह काम करते हैं। तरल डीएपी और तरल यूरिया का उपयोग कर किसान भूमि में केंचुओं की संख्या में वृद्धि कर सकता है और अपने उत्पादन व आय को कम किए बगैर प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ सकता है। इससे भूमि का संरक्षण भी किया जा सकेगा।

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