सहकारिता

सूचना आयोग ने सहकारी समितियों को आरटीआई के दायरे में माना, सूचना उपलब्ध कराने का आदेश

नई दिल्ली, 26 मार्च। राज्य सूचना आयोग ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सहकारी समितियों को लोक संस्था की श्रेणी में मानते हुए सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के अंतर्गत माना है। सूचना आयुक्त राहुल सिंह नें सभी जिलों में पदस्थ उपायुक्त सहकारिता को सरकारी समितियां की जानकारी देने के लिए लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किया है और सूचना संयुक्त आयुक्त सहकारिता को प्रथम अपीलीय अधिकारी बनाया है।

मामला मध्यप्रदेश का है, जहां राज्य सूचना आयोग ने 8 अलग-अलग मामलों में अपील को स्वीकार करते हुए, सहकारी समितियों के इस दावे का खारिज कर दिया कि जिसमें समितियां सुप्रीम कोर्ट के थलापलम जजमेंट का हवाला देते हुए स्वयं को आरटीआई अधिनियम से बाहर बताते हए जानकारी देने से मना करती आयी हैं।

सिंह ने प्रमुख सचिव, मध्यप्रदेश शासन, सहकारिता विभाग, भोपाल को आदेशित किया कि खाद्यान्न उपार्जन एवं पीडीएस के संचालन में शामिल सहकारी समितियों को तत्काल प्रभाव से सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन लाया जाये ओर सहकारी समितियों से संबंधित आरटीआई आवेदनों में वांछित जानकारी को प्रत्येक जिले में उपलब्ध कराने के लिये जिले में एक माह में लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति की जाये। सिंह ने कहा कि आरटीआई एक्ट की धारा 19 के तहत जानकारी प्राप्त नहीं होने पर प्रथम अपीलीय अधिकारी संयुक्त आयुक्त, सहकारिता के समक्ष प्रथम अपील दायर की जाएगी।

पारदर्शी व्यवस्था कायम होगी

इस महत्वपूर्ण आदेश में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि खाद्यान्न उपार्जन एवं पीडीएस का संचालन करने वाली सहकारी समितियों के सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन आने से प्रदेश में खाद्यान्न उपार्जन एवं पीडीएस के संचालन में भ्रष्टाचार निरोधी, पारदर्शी व्यवस्था के साथ जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों की जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होगी। किसानों के द्वारा अक्सर खाद्यान्न उपार्जन और खाद, बीज की व्यवस्था में अनियमितताओं की शिकायत की जाती है परन्तु सहकारी समितियों की व्यवस्था पारदर्शी नहीं होने से किसानों की समस्या का निराकरण नहीं हो पाता है। सिंह ने कहा कि अब आरटीआई में इन सरकारी समितियों की सही स्थिति जनता के सामने लायी जा सकेगी।

आरटीआई एक्टिविस्ट ने फैसले का स्वागत किया

सूचना आयुक्त ये यह निर्णय रीवा के आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी की अपील पर सुनाया। द्विवेदी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सूचना आयोग ने सहकारी समितियों को आरटीआई के दायरे में लाकर किसानों के साथ-साथ समितियों के हितग्राहियों के साथ बहुत बड़ा न्याय किया है। फैसले को दूरगामी परिणाम वाला बताते हुए द्विवेदी ने कहा कि इस आदेश से न केवल मध्य प्रदेश में, बल्कि पूरे भारतवर्ष में सहकारी समितियों को आरटीआई के दायरे में लाने में मार्ग प्रशस्त होगा। भारतीय किसान संघ प्रांत प्रचारक प्रमुख मध्यभारत राहुल धूत ने इसे अच्छा निर्णय बताया है। धूत ने कहा कि सहकारी समितियों की व्यवस्था पारदर्शी होना बहुत जरूरी है। इससे सहकारी समिति प्रबंधकों की मनमानी पर रोक लगेगी। समिति की कार्यप्रणाली में कसावट आएगी, जिससे किसानों का भला होगा।

समितियों पर सरकार का नियंत्रण

सूचना आयुक्त ने माना कि सरकारी खाद्यान्न उपार्जन करने वाली सहकारी समितियां पूरी तरह से शासन की नियंत्रण में कार्य करती हैं। यहाँ तक कि इन सहकारी समितियां में मिलने वाले वेतन-भत्तों का निर्धारण भी शासन के स्तर पर होता है, साथ ही, खाद्यान्न उपार्जन की पूरी प्रक्रिया शासन की नियंत्रण और दिशा निर्देश पर ही होती है। सहकारिता विभाग के पास किसी भी सहकारी संस्था से कोई भी दस्तावेज प्राप्त करने के लिये सहकारिता अधिनियम के तहत पर्याप्त अधिकार है। इसीलिए सहकारिता विभाग के अधिकारी अपनी जवाबदेही से इंकार नहीं कर सकते हैं कि दस्तावेज उन्हें उपलब्ध नहीं कराई जा रहे हैं।

राज्य सरकार ने पर्याप्त रूप से वित्त पोषित

किसी भी संस्था को पब्लिक अथॉरिटी तभी कहा जा सकता है, जब कोई संस्था शासन के नियंत्रण में हो या फिर शासन द्वारा नियमित रूप से वित्त पोषित हो। मध्य प्रदेश राज्य के नियम में पर्याप्त रूप से वित्तपोषित (Substantially Financed) को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यदि किसी संस्था में शासन का 50000 रुपये का न्यूनतम परोक्ष या अपरोक्ष रूप से निवेश हो, तो वो संस्था लोक प्राधिकारी होगी। सभी सहकारी संस्थाओं को अनाज उपार्जन पर कमीशन के तौर पर राशि शासन से प्राप्त होती है। शासन की अंशपूंजी के अलावा सहकारी समितियों को प्रत्येक राशन की दुकान के लिए संचालन के लिए सेल्समैन की सैलरी के लिए 6000 रुपये खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग द्वारा दिये जाते हैं और यह सभी राशि हर माह लाखों रुपये होती है। ऐसी स्थिति में ये सभी सहकारी समितियां प्रर्याप्त रूप से वित्त पोषित होने की 50000 रुपये की सीमा को पार करती है। आयुक्त ने माना कि शासन द्वारा वित्तपोषित होने से इन सभी सहकारी संस्थाओं की भूमिका लोक प्राधिकारी के रूप में स्थापित होती है।

हाईकोर्ट के आदेश को बनाया आधार

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने औरंगाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाते हुए सभी सहकारी समितियां को आरटीआई के अधीन बताया है। सिंह ने कहा कि औरंगाबाद हाईकोर्ट ने आरटीआई में सभी कोऑपरेटिव सोसाइटी की जानकारी को देने के लिए रजिस्टार कोऑपरेटिव सोसाइटी को जवाबदेह माना है। इससे सहकारी संस्थाओं की भूमिका लोक प्राधिकारी के रूप में स्थापित होती है।

 

 

error: Content is protected !!