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कॉमन कैडर वाले सहकारी समिति व्यवस्थापकों के पक्ष में हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय, सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन एसएलपी के निर्णयानुसार मिलेंगे लाभ-परिलाभ

जोधपुर, 3 सितम्बर (मुखपत्र)। राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर खंडपीठ ने ग्राम सेवा सहकारी समितियों के व्यवस्थापकों, जिनकी नियुक्ति कॉमन कैडर के तहत जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) के माध्यम से की गयी, के पक्ष में महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया है। न्यायाधीश विनित कुमार माथुर की खंडपीठ ने 30 अगस्त 2024 को तरूण शर्मा व अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य में निर्णय दिया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांग किये गये समस्त लाभ, परिलाभ एवं राहत आदि, सुप्रीम कोर्ट में लम्बित विशेष अनुमत याचिका (सिविल) 7484/2019 में पारित निर्णय के आलोक में देय होंगे।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में यह एसपीएल, प्रदेश के समस्त 29 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (डीसीसीबी) द्वारा राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा राजस्थान सहकारी कर्मचारी संघ बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य के मामले में दिये गये फैसले के विरुद्ध दायर की गयी है। इस फैसले में न्यायालय द्वारा आदेश दिया गया था कि कैडर अथोरिटी के अधीन जिन व्यवस्थापकों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा नियुक्ति पत्र दिये गये, उन्हें समस्त लाभ, परिलाभ आदि, बैंक कर्मचारी को देय लाभ, परिलाभ के अनुरूप, याचिका दायर करने की तिथि से दिये जायें।

जोधपुर हाईकोर्ट में अधिकांश याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी करने वाले एडवोकेट अशोक चौधरी ने बताया कि ग्राम सेवा सहकारी समितियों के लगभग 100 व्यवस्थापकों, जिनकी नियुक्ति जिला स्तरीय कैडर अथोरिटी द्वारा की गयी थी, ने हाईकोर्ट में अलग-अलग पटिशन दायर कर, डालूराम कुमावत मामले में जोधपुर हाईकोर्ट द्वारा दिये गये निर्णय के अनुरूप, केंद्रीय सहकारी बैंकों से वेतन, भत्ते अन्य लाभ, परिलाभ दिलाये जाने का आग्रह किया गया था। सभी प्रकरण एक ही नेचर के होने के कारण, कोर्ट ने सभी में एक साथ सुनवाई की। इनमें बीकानेर, नागौर, पाली, श्रीगंगानगर, राजसमंद, सिरोही, जालौर, चूरू, हनुमानगढ़, जोधपुर, चित्तौडग़ढ़, बांसवाड़ा और भीलवाड़ा जिले के सेवानिवृत्त व्यवस्थापक शामिल हैं, जिनके द्वारा राजस्थान सरकार (मार्फत शासन सचिव, सहकारिता विभाग), रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां और सम्बंधित जिला केंद्रीय सहकारी बैंक एवं सम्बंधित ग्राम सेवा सहकारी समिति को प्रतिवादी बनाया गया।

चौधरी ने बताया कि 1991 से पूर्व व्यवस्थापकों को केंद्रीय सहकारी बैंक के द्वारा ग्राम सेवा सहकारी समितियों में नियुक्ति दी जाती थी लेकिन उनको किसी प्रकार के लाभ बैंक द्वारा नहीं दिये जाते थे। डालूराम व अन्य बनाम राजस्थान राज्य व अन्य में उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय पारित कर यह आदेश पारित किया गया कि जिन व्यवस्थापकों की नियुक्ति बैंक द्वारा की गई है, वो बैंक के कर्मचारी होंगे। उसके बाद इस निर्णय की पालना में राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर खण्डपीठ द्वारा यह निर्णय दिया गया कि व्यवस्थापक बैंक से सभी प्रकार के लाभ प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। बैंकों द्वारा इन निर्णयों के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में एस.एल.पी. दायर की गई, जिसमें वर्तमान में स्थगन आदेश चल रहा है।

इन निर्णयों की पालना करते हुए न्यायाधीश विनित कुमार माथुर ने करीब 100 याचिका निस्तारित करते हुए यह व्यवस्था दी कि जो भी निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया जायेगा, उसका लाभ इन याचिकाकर्ताओं को भी प्राप्त होगा। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अशोक कुमार चौधरी ने पैरवी करते हुए यह तर्क दिया कि व्यवस्थापकों को सेवाकाल के दौरान बैंक द्वारा किसी भी प्रकार का लाभ नहीं दिया गया और उनको उसी पे-स्केल में रखा गया। जबकि बैंक कर्मियों को समस्त लाभ प्रदान किये गये। अत: इन व्यवस्थापकों को भी बैंक कर्मचारियों के समान लाभ प्रदान किये जावे। उच्च न्यायालय ने इन तर्कों से सहमत होते हुए यह व्यवस्था दी कि जो भी निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया जायेगा, उसका लाभ इन व्यवस्थापकों को भी मिलेगा।

 

1977 में हुआ था कैडर अथोरिटी का गठन

यह भी उल्लेखनीय है कि 1977 में रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां द्वारा बनाये गये व्यवस्थापकीय सेवा नियम, 1977 के अंतर्गत कैडर अथोरिटी का गठन किया गया था, जिसमें जिला स्तरीय कैडर अथोटिरी द्वारा साक्षात्कार के माध्यम से ग्राम सेवा सहकारी समितियों में व्यवस्थापकों की नियुक्ति की गयी। उनका स्थानांतरण एवं पदस्थापन, अनुशासनात्मक कार्यवाही, आरोप पत्र, निलम्बन और दंडित करने का अधिकार भी केंद्रीय सहकारी बैक के प्रबंध निदेशक को सदस्य सचिव होने के नाते दिया गया, जबकि वेतन उन्हें सोसाइटी से दिया जाता था। अलवर जिले की खेड़ा रसूलपुर के अध्यक्ष की जयपुर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका, जिसमें कहा गया था कि बैंक द्वारा नियुक्त कर्मचारी को वेतन देने के लिए समिति बाध्य नहीं है, पर लम्बी सुनवाई के पश्चात, कोर्ट ने 1991 में कैडर अथोरिटी को भंग कर दिया और 1977 के सेवा नियम क्वेश कर दिये। फिर, 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए माना कि बैंकों द्वारा नियुक्त व्यवस्थापक, सर्विलेंस ऑफिसर के रूप में सोसाइटी में कार्यरत हैं, ये सोसाइटी के कर्मचारी नहीं हैं। इन्हें ग्राम सेवा सहकारी समिति द्वारा नियुक्ति नहीं दी गयी।

 

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