सहकारिता

राजस्थान के सहकारी आंदोलन को सुशासन, सदाचार और पारदर्शिता की अधिक दरकार

बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं में अत्यधिक, अनावश्यक आर्थिक साधनों और सुविधाओं का भारी दुरुपयोग किया गया है! मुख्य कार्यकारी के रूप में बैंक के व्यावसायिक प्रबंधन और कारोबारी हित के लिए कितना चिंतन करना, कार्ययोजना बनाना, शाखाओं की स्थिति की समीक्षा, निगरानी कर निर्णायक क्रियाशीलता रही है! बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में कार्यदिवस और कार्य घंटे में बैंक में सकारात्मक पाबंद रहे हैं! व्यावसायिक वित्तीय संस्था के अभिभावक होने के नाते मन-वचन-कर्म और बॉडी लैंग्वेज से अपनी संस्था के कर्मचारियों, अधिकारियों को कुशल कार्यसंस्कृति के लिए प्रोत्साहित, प्रेरित और प्रेरणित करते रहें हैं या व्यवस्था पर नकारात्मक, निराशाजनक जुमले बोलकर खराब करते रहते हैं!

 

सूरजभान सिंह आमेरा, सहकार नेता

आज भारत रत्न, मूल्य आधारित राजनीति-जीवन के जीवन्त हस्ताक्षर और माँ भारती के लाड़ले सपूत श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती को पूरा राष्ट्र ‘सुशासन दिवस’ के रूप में संकल्प लेकर, स्मरण कर, मना रहा है। हमारे प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री भजनलाल जी शर्मा ने सुशासन दिवस पर लोक सेवा, जवाबदेही और संवेदनशील शासन का संकल्प लेने का हम सभी को आह्वान किया है।

प्रिय सम्मानित सहकारी अधिकारियों, सहकारी बैंक और पैक्स कर्मियों, सरकारी उच्च प्रशासनिक लोक सेवकों और सहकारिता मंत्रालय के सुधिजनों, आज हम सभी अटल जी की जयंती पर ईमानदारी से अपनी- अपनी पुण्य आत्मा और ईश्वर को साक्षी मानकर यह आत्म मंथन, चिन्तन, पुनर्वालोकन एवं समीक्षा करें कि पिछले दो वर्ष में हमारे अपने सहकारी बैंकों और पैक्स में कितने करोड़ रुपये के गबन-घोटाले हुए हैं! उन सभी आर्थिक गबन/घोटालों में हमारी क्या संलिप्तता, भूमिका, रही है! इन वित्तीय गड़बडिय़ों को रोकने में हमारी क्या निष्क्रियता, उदासीनता और लापरवाही रही है!

बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं में अत्यधिक, अनावश्यक आर्थिक साधनों और सुविधाओं का भारी दुरुपयोग किया गया है! मुख्य कार्यकारी के रूप में बैंक के व्यावसायिक प्रबंधन और कारोबारी हित के लिए कितना चिंतन करना, कार्ययोजना बनाना, शाखाओं की स्थिति की समीक्षा, निगरानी कर निर्णायक क्रियाशीलता रही है! बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में कार्यदिवस और कार्य घंटे में बैंक में सकारात्मक पाबंद रहे हैं! व्यावसायिक वित्तीय संस्था के अभिभावक होने के नाते मन-वचन-कर्म और बॉडी लैंग्वेज से अपनी संस्था के कर्मचारियों, अधिकारियों को कुशल कार्यसंस्कृति के लिए प्रोत्साहित, प्रेरित और प्रेरणित करते रहें हैं या व्यवस्था पर नकारात्मक, निराशाजनक जुमले बोलकर खराब करते रहते हैं!

अन्य सहकारी संस्थाओं – यथा, मार्केटिंग, राजफेड, खरीद केंद्र, उपभोक्ता सहकारिताओं में आए दिन सहकारी आंदोलन को अपयश दिलाने वाले घटनाक्रम घटते रहते हैं! तत्कालीन ऋण माफी हों या मशीनीकरण, पैक्स की स्क्रीनिंग हो या डीपीसी, बीमा या गोपालन, ऐसा नहीं लगता हम हर कार्य में कमोबेश, आर्थिक स्वार्थसिद्धि के एक मात्र लक्ष्य की प्राप्ति के अवसर ही तलाशते रहते हैं!

मित्रों, सब प्रत्येक व्यक्ति इस कटुसत्य से भली-भांति परिचित है कि इस नश्वर संसार से परलोक गमन करते समय कुछ भी साथ ले जाने की व्यवस्था, सुविधा नहीं है। कोरोनाकाल जैसी विकट परिस्थिति को हम सब ने भोगा है। कर्मफल भोगना ही पड़ता है। सदकर्म करें या पापकर्म, हमें, हमारे प्रत्येक कर्म का हिसाब देकर ही जाना है। फिर सभी अधिकारियों को भरपूर पे कमीशन, सेवा निवृत्ति सुरक्षा और बैंक कर्मियों की भारी-भरकम वेतन समझौता सुविधा के बावजूद करोड़ों रुपये के गबन,घोटाले, आनियमितता,आपाधापी और बैंक की बर्बादी आखिर क्यों? हमारी भौतिक भोग-लोभ-वासना अनियंत्रित है और बैंक के रखवाले बेपरवाह, आत्ममुग्धता में मदमस्त, केवल पोस्टिंग का जुगाड़, फिर उसको बनाए रखना प्राथमिकता और पैक्स से लेकर अपेक्स संस्था तक, सर्विस प्रोवाइडर के राम भरोसेें! किसे परवाह है कि हमारी सहकारी संस्थाएं दिन प्रति दिन पाताल की ओर जा रही हैं?

प्रिय बंधुओं, आज प्रदेश में सहकारिता का दीर्घकालीन साख ढांचा भूमि विकास बैंक मृतप्राय: होकर अपने अस्तित्व के लिए जूूझ रहा है। ये हालात रातों-रात नहीं बने और केवल मुख्य कार्यकारी ही इसके लिए दोषी नहीं रहे। इन हालात पैदा करने में हम सभी की क्या भूमिका और जिम्मेदारी रही है! या नहीं? या तब कोई विदेशी शक्ति इनको चला रही थी? हम सरकार, सचिव, एमडी और कार्मिक थोड़े ही थे? या और क्या आज आप हम नहीं है और कोई बाहरी शक्ति थोड़े ही सहकारिता को चला रही है?

आज प्रदेश के पाली, नागौर, जैसलमेर, भरतपुर, टोंक, जालोर, अजमेर और अब तो बाड़मेर भी सीसीबी बैंक के जो हालात हुए हैं या किए गये हैं और अन्य वित्तीय संस्थाओं के होने वाले हैं, उनमें नीचे से ऊपर तक हमारी सभी की क्या निगाहें, प्राथमिकता और ध्येय रहा है! मुझे हालात पर गुरुदत्त की पंक्तियाँ याद आती हैं-

दिल के फफोले जल उठे सीने के घाव से।
इस घर को आग लग गई/रही घर के चिराग से?

आज अटल जी की जयंती पर सुशासन दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ के मंत्र और राज्य के मुख्यमन्त्री भजनलाल जी के लोकसेवा, जवाबदेही और संवेदनशील शासन के लिए भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति के ईमानदारी पूर्ण आचरण, सदाचार और पारदर्शिता की सबसे ज़्यादा आवश्यकता दरकार और ज़रूरत हमारे सहकारी विभाग में है ताकि प्रदेश का सहकारी साख आंदोलन में ‘पैक्स से अपेक्स तक’ बुनियादी ढांचा मज़बूत हों और भारत के सहकारिता मंत्री अमित शाह जी की मंशानुरूप राज्य में ‘सहकारिता से समृद्धि’ क़ायम होकर सहकारिता प्रगतिशील राज्य और समृद्ध भारत के निर्माण में योगदान दें ।

अंत में सहकारिता आंदोलन के सभी हितधारकों से आदर सहित करबद्ध निवेदन, विनती, आग्रह, अपील, अनुरोध और आह्वान है कि मां रूपी सहकारी संस्थाओं और सहकारी आंदोलन पर नए वर्ष 2026 से अब दया दृष्टि रखें, कृपा करें, ईश्वर से डरें और रोटी-रोजी के प्रति पूर्ण ईमानदारी करते हुए मां भारती के साथ गद्दारी नहीं करें अन्यथा कर्म तो भोगने ही पड़ेंगे क्योंकि कर्म का बंटवारा नहीं होता है।

तुम हो चिराग इस गुलशन के।
होगा रोशन आशियाना इसी चिराग से।।
गर बदलेगी लौ दिशा चिराग की।
तो जल जायेगा आशियाना इसी चिराग से।।
जय सहकार जय भारत

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