पहली सेल डीड का पंजीकरण लम्बित होने पर उसी प्लॉट की दूसरी सेल डीड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
नई दिल्ली, 20 जुलाई। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक विक्रेता जिसने सेल डीड निष्पादित किया है, वह उसी प्लॉट के सम्बंध में दूसरी सेल डीड निष्पादित नहीं कर सकता, क्योंकि पहली सेल डीड का पंजीकरण लम्बित है। कोर्ट ने कहा कि डीड निष्पादित होते ही विक्रेता सम्पत्ति पर सभी अधिकार खो देता है और वह केवल इसलिए किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि डीड पंजीकृत नहीं हुई है। न्यायालय ने कहा कि पंजीकरण न कराने का एकमात्र परिणाम यह है कि क्रेता सम्पत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 और पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों के कारण साक्ष्य के रूप में ऐसी डीड प्रस्तुत नहीं कर सकता।
कौशिक प्रेमकुमार मिश्रा और अन्य बनाम कांजी रावरिया/कांजी और अन्य, सिविल अपील संख्या-1573/2023 मेंं अंतिम निर्णय सुनाते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा,‘दस्तावेज के पंजीकरण का मुद्दा राज्य के पास है, जिसके लिए दस्तावेजों का अनिवार्य पंजीकरण आवश्यक है, ताकि उसे अचल सम्पत्ति के ऐसे हस्तांतरण पर देय स्टाम्प शुल्क के रूप में राजस्व से वंचित न होना पड़े। यदि क्रेता के पास स्टाम्प शुल्क का भुगतान करने का कोई साधन नहीं है या पंजीकरण प्राधिकारी द्वारा स्टाम्प शुल्क की अत्यधिक मांग की जाती है, जिसे क्रेता उस समय भुगतान करने में असमर्थ है, लेकिन वह इस तथ्य से संतुष्ट है कि विक्रेता ने पंजीकरण के लिए प्रस्तुत सेल डीड को निष्पक्ष और विधिवत निष्पादित किया है और उसे खरीदी गई सम्पत्ति पर कब्जा दिलाया है, जिसका वह शांतिपूर्वक आनंद ले रहा है, तो वह किसी भी समय स्टाम्प शुल्क की कमी का भुगतान करने के लिए हमेशा स्वतंत्र है। पंजीकरण के लिए प्रस्तुत दस्तावेज उस समय तक पंजीकरण प्राधिकारी के पास रहेगा, जब तक कि कमी दूर नहीं हो जाती। हालांकि, कमी के कारण पंजीकरण लम्बित रहने से विक्रेता को कोई लाभ नहीं मिल सकता, जिसने बिक्री मूल्य प्राप्त करने के बाद सेल डीड निष्पादित करके अपने सभी अधिकारों को पहले ही समाप्त कर दिया है। वह केवल इसलिए हस्तांतरित भूमि का मालिक नहीं बन सकता क्योंकि बिक्री का दस्तावेज पंजीकरण के लिए लम्बित है। यह क्रेता ही है जो न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के रूप में अचल सम्पत्ति के सम्बंध में पंजीकरण के लिए लम्बित ऐसे दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकता है क्योंकि यह टीपी अधिनियम तथा अधिनियम 1908 में निहित वैधानिक प्रावधानों के मद्देनजऱ अस्वीकार्य होगा।’
न्यायालय ने आगे कहा कि विक्रेता द्वारा निष्पादित दूसरी सेल डीड, जबकि पहली डीड पंजीकरण की प्रतीक्षा कर रही थी, अमान्य है। यदि विक्रेता के अधिकार पहले ही पहली बिक्री से अलग हो चुके थे, तो बाद में पारदर्शिता के बिना तथा बुरे विश्वास में की गई कोई भी डीड अमान्य है।
ये है मामला
प्रतिवादी संख्या 2 ने 1985 में अपीलकर्ता संख्या 1 तथा उसके नाबालिग भाई (जिसका प्रतिनिधित्व उनकी मां कर रही थी), के पक्ष में सेल डीड निष्पादित की। स्टाम्प शुल्क के भुगतान में कमी के कारण यह सेल डीड पंजीकृत नहीं हो सकी तथा पंजीकरण उप-पंजीयक के कार्यालय में लम्बित रहा।
वर्ष 2010 में प्रतिवादी संख्या 2 ने प्रतिवादी संख्या 1 के पक्ष में (बाद के खरीदार) के साथ उसी सम्पत्ति के सम्बंध में एक हस्तांतरण डीड निष्पादित की। इसके बारे में जानने के बाद, अपीलकर्ताओं ने अपने पक्ष में सेल डीड का पंजीकरण करवाया। डीड 2011 में पंजीकृत हुई। हालांकि, जब प्रतिवादी संख्या 1 ने अपीलकर्ताओं के वाद की सम्पत्ति के कब्जे में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो बाद में प्रतिवादी संख्या 1 के पक्ष में सेल डीड को रद्द करने के लिए वाद दायर किया और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की।
ट्रायल कोर्ट ने 2016 में वाद खारिज कर दिया, जिसमें अपीलकर्ताओं के पक्ष में सेल डीड को मुख्य रूप से इस कारण से शून्य माना गया, कि निष्पादन के समय वे दोनों नाबालिग थे। अपील में, जिला न्यायाधीश ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और वाद का फैसला सुनाया। प्रतिवादी संख्या 1 ने अकेले ही हाईकोर्ट के समक्ष इस निर्णय का विरोध किया। 2022 में, अपील को अनुमति दी गई और वाद खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।