खास खबरसहकारिता

हाई कोर्ट ने सहकारी सोसाइटी का आदेश रद्द कर ग्राम सेवा सहकारी समिति व्यवस्थापक को बहाल किया

जोधपुर, 1 दिसम्बर (मुखपत्र)। उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ ने एक ग्राम सेवा सहकारी समिति लिमिटेड में कार्यरत व्यवस्थापक की सेवाएं समाप्त करने के सोसाइटी के आदेश को निरस्त कर दिया है। हाइकोर्ट ने पाली जिले के सोजत क्षेत्र के भायलों का वास निवासी जसवंत सिंह की याचिका पर यह निर्णय सुनाया।

याचिका के अनुसार, जसवंत सिंह 6 जून 1985 से लगातार, पाली सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड से सम्बद्ध सबलपुरा ग्राम सेवा सहकारी समिति में नियोजित है और फिलहाल व्यवस्थापक पद पर कार्यरत है। सोसाइटी अध्यक्ष ने व्यक्तिगत नाराजगी के चलते 12 अप्रेल 2024 को, सेवा शर्तों की पालना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की पालना नहीं करते हुए, बिना नोटिस दिये सबलपुरा ग्राम सेवा सहकारी समिति लिमिटेड के व्यवस्थापक पद से जसवंत सिंह की सेवाएं समाप्त कर दी। इस पर जसवंत सिंह ने पाली सीसीबी एमडी, ईओ और सोसाइटी अध्यक्ष को पार्टी बनाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।

हाईकोर्ट के नोटिस के जवाब में सोसाइटी की ओर से बताया गया कि जसंवत सिंह को विधिवत नोटिस दिया गया था, लेकिन उसने नोटिस तामिल नहीं किया, जिसे उसके घर की दीवार पर चिपकाया गया। इस ढंग से तामिल होने के बावजूद, वह 12 अप्रेल 2024 को बुलाई गयी सोसाइटी की बैठक में उपस्थित नहीं हुआ, तब प्रस्ताव पारित कर सेवाएं समाप्त करने का निर्णय लिया गया, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि सेवाएं समाप्त करने से पहले, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया। जवाब में यह भी कहा गया कि सेवाएं समाप्त करने के विरुद्ध व्यवस्थापक के पास प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों/वृहद कृषि बहुउद्देश्यीय सहकारी समितियों के कर्मचारियों के चयन, नियुक्ति और सेवा शर्तों के अंतर्गत अपील का अधिकार प्राप्त था, इसलिए न्यायालय में इस याचिका को नहीं सुना जाना चाहिये।

सोसाइटी द्वारा व्यवस्थापक की सेवाएं समाप्त करने के पीछे कारणों का उल्लेख किया गया, जिसमें व्यवस्थापक द्वारा गलत वेतन ग्रेड लेने, अन्य वित्तीय अनियमितताएं करने, सोसाइटी का रिकार्ड नहीं देने, सोसाइटी कार्यालय पर ताला लगाने जिसे बाद में पुलिस हस्तक्षेप से तुड़वाया गया, हालांकि रिकार्ड तब भी नहीं मिला। सोसाइटी की ओर से न्यायालय को यह भी बताया गया कि जसवंत सिंह के खिलाफ 6 सितम्बर 2021 को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में परिवाद दर्ज किया गया, इसलिए उसका आचरण व्यवस्थापक पद पर बने रहने लायक नहीं है।

हालांकि, अदालत ने सोसाइटी के तर्क को खारिज करते हुए यह माना कि व्यवस्थापक पद से जसवंत सिंह की सेवाएं समाप्त करने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत और सेवा शर्तों की पालना नहीं की गयी। अदालत के अनुसार, नोटिस जारी करने के पश्चात आयोजित सोसाइटी की बैठक की कार्यवाही में नोटिस तामिल होने का उल्लेख नहीं है। अदालत ने कहा कि सेवा समाप्ति का आदेश जारी करने से पहले, सेवा शर्तों के अनुरूप व्यवस्थापक को आरोप पत्र जारी करने और उचित जांच करना आवश्यक है। सेवा शर्तोंे के अनुसार गंभीर कदाचार के मामले में, व्यवस्थापक को संक्षिप्त नोट सहित नोटिस जारी कर, जवाब मांगना चाहिये और यदि आरोपी का उत्तर असंतोषजनक है, तो एक नियमित जांच करनी चाहिये। इसके उपरांत ही अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिये, जब इस मामले में अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचकर, सेवा समाप्ति का निर्णय लिया गया।

अदालत ने कहा, ‘चूंकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया है, इसलिए इस न्यायालय का विचार है कि सेवा शर्त के खंड 41.5 के तहत प्रदान की गई अपील का उपाय याचिकाकर्ता को अयोग्य ठहराने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत गारंटीकृत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है। इसलिए, रिट याचिका को अनुमति दी जाती है और 12 अप्रेल 2024 के विवादित आदेश को रद्द और अपास्त किया जाता है। याचिकाकर्ता को सेवा में जारी माना जाएगा और सभी परिणामी लाभों का हकदार माना जाएगा।

अदालत ने आगे कहा, ‘प्रतिवादी (सोसाइटी) याचिकाकर्ता के खिलाफ कानून के अनुसार (यदि आवश्यक समझा जाए) आगे बढऩे के लिए स्वतंत्र होंगे, यद्यपि इसके लिए सोसाइटी को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और सेवा शर्तों की पालना करनी होगी।

error: Content is protected !!