स्किजोफ्रेनिया रोगी भी बेहतर जीवन जी सकता है – डॉ. विशु टांटिया
श्रीगंगानगर, 24 मई (मुखपत्र)। वरिष्ठ मनोचिकित्सक एवं टांटिया हॉस्पिटल (मल्टीस्पेशिलिटी क्रिटिकल केयर सेंटर) के डायरेक्टर डॉ. विशु टांटिया ने कहा है कि स्किजोफ्रेनिया (Schizophrenia) एक बीमारी है और इसका उपचार सम्भव है। यदि रोगी को परिवार एवं मित्रों का सहयोग मिले, तो वह भी बेहतर और सामान्य जीवन जी सकता है।
वे शुक्रवार को विश्व स्किजोफ्रेनिया दिवस पर हनुमानगढ मार्ग टांटिया यूनिवर्सिटी कैम्पस में स्थित डॉ. एसएस टांटिया मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (जन सेवा हॉस्पिटल) में आयोजित कार्यक्रम में सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत में अधिकांश स्किजोफ्रेनिया रोगी उपचार ही नहीं लेते, जबकि इसका समय पर उपचार आवश्यक होता है अन्यथा यह गम्भीर रूप धारण कर लेता है। इसलिए ऐसे रोगियों को प्रेरित किया जाना चाहिए। उनसे सद्भावपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। परन्तु जो स्किजोफ्रेनिया रोगी अपराध की राह पकड़ लें, उनके लिए कानूनसम्मत उपाय भी किए जाने चाहिए।
इससे पहले जन सेवा हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. अंकुश शर्मा ने बताया कि स्किजोफ्रेनिया का अर्थ होता है बंटा हुआ दिमाग। इसमें रोगी वास्तविक और अवास्तविक के बीच के अंतर को बता नहीं पाता है। अपनी ही बनाई दुनिया में उसका दिमाग हमेशा चलता रहता है। दुनिया में एक प्रतिशत लोग इसके शिकार होते हैं। यह रोग पुरुषों में 15 से 25 वर्ष की आयु में होने की आशंका रहती है जबकि महिलाओं में यह 20 से 30 वर्ष की उम्र में होता है। इसके प्रमुख कारणों में आनुवांशिकता के साथ पारिवारिक तनाव, मादक पदार्थों का अत्यधिक सेवन और जन्म के समय हुई दिमागी क्षति हो सकते हैं। नशे से यह विकराल रूप धारण कर सकता है।
जन सेवा हॉस्पिटल के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रो. बलजीतसिंह कुलडिय़ा ने बताया कि कार्यक्रम में एक लघु फिल्म का प्रदर्शन किया गया, जिसमें स्किजोफ्रेनिया रोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। कार्यक्रम में मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. एचएस बिन्द्रा, मनोविज्ञानी डॉ. मनीष बाघला, हॉस्पिटल के प्रबंधक वेद चौधरी, नर्सिंग सुपरिटेंडेंट इंद्राज भाकर, श्रीराम, रामकन्या, सुशीला, सोशल मीडिया हैंडलर सुश्री मेघा शर्मा सहित अनेक लोग मौजूद थे। मंच संचालन सुनैना नियोमी गिल ने किया।