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सहकारी सोसाइटियों में बदलने जा रहे हैं आरक्षण प्रावधान, संचालक मंडल के 50 प्रतिशत पद आरक्षित होंगे

नई दिल्ली, 31 जुलाई। भाजपा शासित मध्य प्रदेश में राज्य सरकार सहकारी समितियों में 10 वर्ष बाद आरक्षण प्रावधान बदलने जा रही है। अब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 50 प्रतिशत पद आरक्षित होंगे। सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 48(3) में संशोधन प्रस्तावित है, जिसे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा। इससे पैक्स से अपेक्स तक की संस्थाओं में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।

मप्र में वर्ष 2013 के पहले यही व्यवस्था लागू थी, लेकिन बाद में यह प्रावधान कर दिया गया था कि समिति के संचालक मंडल में तीनों आरक्षित वर्ग से केवल एक ही सदस्य रह सकता है। इस व्यवस्था से प्रतिनिधित्व गड़बड़ा रहा था, इसलिए फिर से पुरानी व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 48(3) में संशोधन किया जाएगाा। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में संशोधन विधेयक प्रस्तुत होगा और यदि आवश्यकता हुई तो अध्यादेश के माध्यम से भी व्यवस्था को प्रभावी किया जा सकता है।

मध्य प्रदेश में 4523 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इसके अलावा उपभोक्ता, भंडार, विपणन, गृह निर्माण सहित अन्य क्षेत्रों की समितियों को मिलाकर लगभग 10 हजार समितियां हैं।

सदस्यों की हिस्सेदारी की संख्या से तय होता था आरक्षण

वर्ष 2013 के सहकारी समितियों के चुनाव तक यह व्यवस्था थी कि समिति के संचालक मंडल के सदस्यों की कुल संख्या में से आधे आरक्षित वर्ग से लिए जाएंगे। इसमें भी संबंधित समिति के कुल सदस्यों में जिसका जितना अनुपात होगा, उसके अनुसार आरक्षण मिलेगा। इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग शामिल था। जिस संस्था में एक चौथाई इससे अधिक किंतु आधे से कम सदस्य एससी, एसटी या ओबीसी के हों, वहां सभी वर्गों के लिए एक-एक सीट आरक्षित करने का प्रावधान था।

जहां तीनों वर्गों की सदस्य संख्या एक चौथाई से कम है, वहां केवल एक सदस्य के लिए स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था थी। वर्ष 2011 में हुए संविधान संशोधन के बाद जारी गाइडलाइन में यह प्रावधान कर दिया गया कि केवल एक पद आरक्षित वर्ग के लिए रखा जाएगा। इसके कारण समीकरण गड़बड़ा रहे थे।

संशोधन का प्रारूप तैयार

सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि विधानसभा के आगामी सत्र में सहकारी अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित किया जाएगा। इसका प्रारूप भी तैयार हो चुका है। यदि सत्र के पूर्व चुनाव कराने की स्थिति बनती है तो अध्यादेश के माध्यम से इस व्यवस्था को प्रभावी कर दिया जाएगा।

सभी वर्गों की होगी भागीदारी

सहकारी अधिकारियों के अनुसार, नयी व्यवस्था का लाभ यह होगा कि अब समितियों के संचालक मंडल में सभी वर्गों की भागीदारी होगी। जब प्राथमिक स्तर पर आरक्षित वर्ग से सदस्य आएंगे तो जिला सहकारी केंद्रीय बैंक हों या फिर राज्य स्तरीय संस्थाएं, सबमें सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होगा।

 

 

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