कहि-सुनी : भिश्ती निजाम जैसा है शीशमहल का कामचलाऊ मुखिया
ऐसा लगता है कि सहकारिता के शीशमहल को किसी की नजर लग गयी है। कुछ ही दिनों के भीतर घटित हुए दो घटनाक्रम ने शीशमहल की चमक पर ग्रहण लगा दिया। वैसे तो शीशमहल के मुखिया की कुर्सी पर बहुतेरे अफसरों की नजर है, लेकिन ये नजर और वो नजर, दोनों अलग-अलग नजर है। यदि आप सही नजर से देखेंगे, तभी नजर-नजर में फर्क नजर आयेगा। कुछ दिन पहले शीशमहल वाले मुखिया, एक लॉबी विशेष के षड्यंत्र का शिकार हो गये और सरकार ने उनसे मुखिया का ताज वापिस ले लिया। अब शीशमहल, स्थायी मुखिया से विहीन है, लेकिन बड़ी मैडम की नजर-ए-इनायत से कामचलाऊ मुखिया के रूप में तोपखाना वाले शहर की जर्जर तोप कार्यरत हैं, जिसमें चंद दिनों का ही बारूद बाकी है। इस अत्यंत अल्प बारूद वाली तोप को पांच-छह माह पहले जब सरकार ने शीशमहल में नम्बर तीन की कुर्सी पर बैठाया था, तब यह तोप दहाड़े मार के रोयी थी और जार-जार आंसू बहाये थे। गाहे-बगाहे, जहां भी मौका मिला, हर जगह ‘डूंगला सरकार’ और ‘बड़ी मैडम’ की धाप के आलोचना करते, यह कहते हुए कि देखो सर्विस के अंतिम पड़ाव पर कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं। मेरे को दो बैच जूनियर के नीचे पटक दिया है।
जर्जर तोप की तत्कालिन मुखिया से पुरानी अदावत थी, जो सूर्यनगरी की कुर्सी को लेकर हुए घमासान के बाद एकतरफा ही पनपी थी। हटाये गये मुखिया जी तो काफी संवेदनशील थे और पुरानी बातों को भूलकर आगे बढ़ गये थे, इसलिए जर्जर तोप को केबिन में घंटों बिठाते, चाय और राय (रायशुमारी) का दौर चलता। हालांकि, पुराने मुखिया की धमक और अप्रोच को देखकर सालभर से जंग खायी तोप के अंदर बदले की भावना का बारूद फट पडऩे की कगार तक पहुंच जाता। इसलिए, पुराने मुखिया के शीशमहल से रवाना होते ही, झट से मुखिया की कुर्सी लपक ली। कोई और अफसर होता तो मात्र 48 दिन की नौकरी शेष रहते मिली ऑफर को ठुकरा कर छुट्टी पर चला गया होता, लेकिन ये तो दंडवत हो गये, मानो, महाराज युधिष्ठिर की भांति सशरीर स्वर्ग में जाने का अवसर मिल गया। वैसे कामचलाऊ मुखिया विशुद्ध समदर्शी हैं, सबको एक समान भाव से देखते हैं।
‘अरे वो तो चोर है साला’ ये इनका तकिया कलाम है। यही कारण है कि कुर्सी पर बैठते ही, अपनी आदत से मजबूर होकर, पुराने मुुखिया और उनकी कार्यशैली पर आलोचनात्मक टीका-टिप्पणी शुरू कर दी। इतना ही नहीं, पहला अवसर मिलते ही, पुराने मुखिया जी के सूर्यनगरी वाले कार्यकाल की कुंडली खंगालने के लिए अपने पुराने जोन में तीन-चार दिन मशक्कत कर आये। इधर, शीशमहल करोड़ों के डबल भुगतान को लेकर टेंशन में था, उधर, साहब तोप खाना शहर में स्वागत सत्कार कराते घूम रहे थे। यानी रोम जल रहा था और नीरो चैन से बांसुरी बजा रहा था।
नीयर एक्सपायरी डेट वाली तोप में कितना मैनेजमेंट स्किल है, ये तो हम उनके कामचलाऊ मुखिया बनने के पहले ही सप्ताह में देख चुके हैं। पांचवें ही दिन शीशमहल के छोटे नवाबों ने धरतीपुत्रों को दोगुना भुगतान कर, कामचलाऊ मुखिया की खीर में कंकर डाल दिये। मजेदार बात यह है कि छोटे नवाबों ने कामचलाऊ मुखिया को दो दिन तक भनक की नहीं लगने दी कि कैसे उन्होंने भारत सरकार से प्राप्त हुई दो डिजिटल फाइलों के नम्बर चेंज करके ‘खेला’ कर दिया और शीशमहल के 14 करोड़ रुपये फंसा दिये। एक खबरनवीस ने ‘डूंगला सरकार’ को जब पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी, तो कामचलाऊ मुखिया को बहुत लपकाया गया। यदि बड़ी मैडम की नजर-ए-इनायत नहीं होती तो जर्जर तोप की कामचलाऊ कुर्सी को कब की नजर लग चुकी होती। भयंकर बेइज्जती स्टाइल में लपकाये जाने के बाद जो असहनीय पीड़ा हुई, उतनी तो जापे वाली लुगाई को भी नहीं होती। उस वेदना का दंश आज तक चुभ रहा है, जिसे शीशमहल के छोटे नवाबों और थोड़ी दूरी पर स्थित कमांड सेंटर वाले अफसरों के सामने जाहिर भी कर चुके हैं।
कामचलाऊ मुखिया में समदर्शी यानी सबको समान भाव से देखने का भाव भले ही जन्मजात है, परन्तु दुनियादारी की समझ कितनी है, ये तो इसी से जाहिर होता है कि जिस छोटे नवाब के कारण लेबर-पेन जैसी असहनीय बेइज्जती का दर्द झेलना पड़ा, सारा दिन उसी को अपने पास बिठाये रखते हैं। इस छोटे नवाब को, इसी तरह की एक गलत पेमेंट के लिए, वर्षा के देवता ने 16 का प्रेमपत्र दिया गया था, जिसके कारण ऊंचे पद का लिफाफा बंद है। अब उस पुरानी गलत पेमेंट से दस गुणा से अधिक रकम फंसा दिये जाने के बावजूद, अभयदान दिया गया है क्योंकि जिस अनुभाग की नालायकी से ये सब घटना हुई, उसके मुखिया तो खुद शीशमहल के कामचलाऊ मुखिया हैं। यदि उसे कुछ कहते हैं तो स्वयं भी चपेट में आते हैं, क्योंकि नालायकी के लिए मोनेटरिंग लैप्स तो पूरे सेक्शन का है। जिस अंदाज में समदर्शी साहब, छोटे नवाब को सारा दिन अपने काख में दबाये रखते हैं, कुछ ऐसे ही अंदाज में पहले वाले मुखिया जी, तोप उर्फ समदर्शी साहब को अपने केबिन में बिठाकर, सीज फायर का संदेश दिया करते थे। पुराने मुखिया जी को शुभचिंतकों ने जागरूक करने के खूब प्रयास किये, कि समदर्शी साहब भरोसे के लायक नहीं हैं, लेकिन सरल स्वभाव वाले पुराने मुखिया ने शुभचिंतकों की बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया। असल में तो समदर्शी साहब का समय बलवान था। उसके भाग्य में शीशमहल वाले मुखिया की कुर्सी का सुख लिखा था, वरना नख से शिख तक, नकारात्मकता से लबरेज समदर्शी को स्वयं भी यह भलिभांति ज्ञान था कि अपनी कार्यशैली के चलते वह कभी शीशमहल का मुखिया नहीं बन सकता।
एक बात और, कामचलाऊ मुखिया अब भले ही चंद दिनों के मेहमान हैं, किन्तु चौसा के भिश्ती निजाम की भांति चमड़े के सिक्के चलाने से बाज नहीं आ रहे। भिश्ती निजाम का नाम तो सुना ही होगा, वही जिसने एक दिन की दिल्ली की बादशाहत मिलते ही चमड़े का सिक्का चलाकर, इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया था। भिश्ती निजाम को बादशाह हुमायूं की जान बचाने की एवज में एक दिल की सल्तनत मिली थी। वह चमड़े का सिक्का आज भी पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।
समदर्शी साहब ने भिश्ती निजाम की भांति सबसे पहले, शीशमहल के अधिकार क्षेत्र से बाहर वाले बैंकों के 95 अफसरों को चेतावनी भरे पत्र भेजे, हालांकि आज तक उनका बाल भी बांका नहीं कर पाये। फिर, दरबाज सजाकर, अपनी नकारात्मक छवि के अनुरूप अधिनस्थ अफसरों पर भड़ास निकालनी शुरू की। मौका मिलते ही स्वागत-सत्कार का दौर शुरू कर लिया और तीन दशक के सर्विसकाल में डेढ़ महीने के लिए शीशमहल का सुख भोगने का मौका मिला तो, शान-बघेरने के लिए परिचय पत्रक भी छपवा लिये, जिन्हें ‘समदर्शी’ स्वयं अपने हाथों से तोपखाना सिटी, सनसिटी और रिश्तेदारों में बांटता डोल रहा है।