सरकार ने फसली ऋण की चुकारा अवधि बढायी, वित्तीय भार सहकारी बैंकों पर डाला
जयपुर, 28 जुलाई (मुखपत्र)। राज्य सरकार ने किसान हित में निर्णय लेते हुए अल्पकालीन सहकारी फसली ऋण की चुकारा अवधि बढ़ा दी है, हालांकि सरकार ने अपनी ही बजट घोषणा का वित्तीय भार प्रदेश के 29 जिला केेंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) पर डाल दिया है। राज्य में केंद्रीय सहकारी बैंकों द्वारा ग्राम सेवा सहकारी समितियां (पैक्स, लैम्पस) के माध्यम से किसानों को फसली ऋण का वितरण किया जाता है।
सहकारिता विभाग के संयुक्त शासन सचिव की ओर से सोमवार को जारी आदेशानुसार, रबी 2024-25 में वितरित अल्पकालीन फसली ऋण की अदायगी तिथि को 5 अगस्त 2025 (अथवा ऋण लेने की दिनांक से 12 माह, जो भी पहले हो) तक बढा दिया गया है। पहले ऋण चुकाने की अंतिम तिथि 30 जून 2025 थी। आदेश में कहा गया है कि इस ऋण हेतु विस्तारित अवधि 1 जुलाई 2025 से 5 अगस्त 2025 तक की अवधि का ब्याज अनुदान सहकारी बैंक अपने संसाधनों से वहन करेगा।
सहकार नेता ने जतायी गंभीर चिंता
सहकार नेता सूरजभान सिंह आमेरा ने फसली ऋण की चुकारा अवधि बढाये जाने की संगठन की मांग स्वीकार करने के लिए राज्य सरकार का आभार व्यक्त किया है, हालांकि उन्होंने विस्तारित अवधि का ब्याज अनुदान का भार जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों पर डाले जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। एक बयान में सहकार नेता ने कहा कि अल्पकालीन फसली ऋण वितरण एवं वसूली का कार्य राज्य सरकार की बजट घोषणा है, इस नाते विस्तारित चुकारा अवधि का वित्तीय भार राज्य सरकार को ही वहन करना चाहिये।
आमेरा ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा ऋण माफी की राशि के विलम्ब से चुकाये जाने पर देय ब्याज के 865 करोड़ रुपये अभी तक नहीं चुकाये, जिससे सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति पहले से कमजोर है। सरकार द्वारा इस राशि का भुगतान नहीं किये जाने के कारण, आरबीआई की गाइडलाइन के अनुरूप सहकारी बैंकों को इस भारी-भरकम राशि का प्रावधान करना पड़ा, जिससे प्रदेश के सभी सहकारी बैंकों की आर्थिक सेहत खराब हो चुकी है और कई सहकारी बैंक घाटे में आ गये हैं।
आमेरा ने दोहराया कि सरकार ऋण माफी की राशि पेटे ब्याज के 865 करोड़ रुपये अविलम्ब केंद्रीय सहकारी बैंकों को जारी करे और फसली ऋण की विस्तारित चुकारा अवधि का जो वित्तीय भार, सहकारी बैंकों पर डाला गया है, उसे राज्य सरकार ही वहन करे, तभी सहकारी बैंक किसानों की सेवा कर पाने में सक्षम बने रह सकेंगे।
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