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सभी सहकारी संस्थाओं के चुनाव करवाकर सहकारिता में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल किया जाये – आमेरा

जयपुर, 13 नवबर (मुखपत्र)। अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के अवसर पर प्रदेश में 14 नवंबर से 20 नवंबर तक 72वां सहकारी सप्ताह मनाया जायेगा। ऑल राजस्थान कोऑपरेटिव बैंक एम्प्लाइज यूनियन, ऑल राजस्थान कोऑपरेटिव बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के प्रान्तीय महासचिव, सहकारी साख समितियां एम्प्लाइज यूनियन के प्रान्तीय अध्यक्ष, सहकार नेता सूरजभान सिंह आमेरा ने सहकार सप्ताह के शुभारंभ अवसर पर समस्त सहकार जनों को बधाई देते हुए प्रदेश में सहकारी संस्थाओं के लोकतांत्रिक स्वरूप को बहाल करने की आवश्यकता जतायी है।

आमेरा ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा एवं सहकारिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गौतमकुमार दक से आग्रह किया कि राज्य के सहकारी आंदोलन व सहकारी संस्थाओं की मजबूती के लिए और हितधारक सदस्यों किसानों की आर्थिक समृद्धि के लिए प्रदेश की सभी सहकारी समितियों के साथ- साथ राज्य स्तरीय शीर्ष सहकारी संस्थाओं के लोकतांत्रिक स्वरूप को बहाल करने के लिए अविलंब राज्य में सहकारी चुनाव कराये जायें। उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, सभी ने सहकारी समितियों/ संस्थाओं के चुनाव के प्रति उदासीन रवैया रखा, जिससे राज्य में एक दशक से अधिक समय से चुनाव नहीं हुए हैं।

हितधारकों की भागीदारी आवश्यक

सहकार नेता ने इस बात पर जोर दिया कि केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह की अगुवाई में देश भर में सहकार से समृद्धि, सहकारिता में सहकार कार्यक्रम की जमीनी स्तर पर सफलता के लिए एवं सहकारिता से स्वावलंबी भारत के निर्माण के लिए सहकारी संस्थाओं में चुनाव की सख्त दरकार है। जब तक सहकारी आंदोलन के सभी कार्यक्रमों, योजनाओं और प्रकल्पों में सहकारिता से जुड़े हितधारकों सदस्यों और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों का नेतृत्व भागीदारी सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक सहकारिता आंदोलन में रिक्तता बनी रहेगी।

एक दशक से नहीं हुए चुनाव

आमेरा ने बताया कि प्रदेश में 8000 से अधिक सहकारी समितियां, 29 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों, राज्य सहकारी बैंक, क्रय विक्रय समितियां व राजफेड, सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार, कॉन्फेड, बुनकर संघ, प्राथमिक इकाई समितियों और उनकी राज्य स्तरीय शीर्ष सहकारी संस्थाएं के चुनाव एक दशक से नहीं हुए हैं, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों की अवहेलना हो रही है।

संस्थाओं को प्रशासकों के हवाले छोडऩा गलत

आमेरा ने बताया कि सहकारिता आंदोलन की मूल आत्मा, मूल दर्शन व सिद्धांत ही उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें हर वर्ग के सदस्यों के प्रतिनिधित्व से निर्वाचित बोर्ड, अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, निदेशक ही समिति व संस्था की जि़म्मेदारी निभाते हैं, लेकिन लम्बे समय से चुनाव नहीं होने से पूरी सहकारी व्यवस्था में, सरकारी अधिकारियों को प्रशासक लगाकर उनके भरोसे छोड़ दिया गया है। मेरा मानना है कि सहकारिता में पारदर्शिता, कार्य कुशलता और जवाबदेही के लिए निर्वाचित बोर्ड प्रासंगिक हो गए हैं। पिछले दशकों में अनुभव प्रमाण व आंकड़ों से स्पष्ट है कि सहकारिता के चुनाव के अभाव में हितधारकों प्रवक्ता नेतृत्व के अभाव में सहकारी संस्थाए कमजोर ही हुई हैं।

सहकारी नेतृत्व का अकाल

आमेरा ने बताया कि सहकारी समितियों संस्थाओं के नियमित चुनाव नहीं होने से आज राज्य में सहकारी नेतृत्व/ कॉपरेटर लीडर का अकाल पड़ा हुआ है। चुनाव से सहकारिता के विकास, संवर्धन एवं मजबूती के लिए सदस्यों में से प्रवक्ता का नेतृत्व निर्माण होता है।

आमेरा ने बताया कि सहकारिता एक जन आंदोलन व्यवस्था है कोई सरकारी आंदोलन नहीं है, इसलिए राज्य में सहकारिता के चुनाव करवाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें। लगातार कई वर्षों तक अधिकारियों को प्रशासक बना कर रखने से सहकारी आंदोलन की आत्मा मर रही है और चुनाव के माध्यम से ही सहकारी संस्थाओं को मजबूत किया जा सकता है।

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