राष्ट्रीयसहकारिता

किसान उत्पादक संगठनों से बढ़ेगी किसानों की आय!

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने हाल ही में किसान उत्पादक संगठन (FPO) को लेकर राष्ट्रीय मसौदा नीति जारी की। इसका लक्ष्य मौजूदा एफपीओ को मजबूत बनाना और नए एफपीओ के निर्माण और उन्हें प्रोत्साहन देने का काम करना है। एक ऐसी व्यवस्था तैयार करने का लक्ष्य है, जहां बेहतर आय दिलाने वाली खेती और कृषक समुदाय के समग्र उत्थान के लिए काम किया जा सके। इस विचार का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे देश के लगभग 2.5 करोड़ किसानों को लाभ पहुंचेगा।

नीतिगत लक्ष्य यह है कि देश के कुल 7256 ब्लॉक में से हर एक में प्राथमिक स्तर के 7 से 8 सक्रिय FPO स्थापना की जाए, जिनमें से प्रत्येक के साथ औसतन 500 किसानों को जोड़ा जाए। जिस प्रकार अमूल ने दूध के लिए मूल्य श्रृंखला तैयार की है, उसी तरह नीतिगत लक्ष्य खेती और बागवानी की उपज के लिए तीसरे स्तर का आपूर्ति श्रृंखला का मॉडल तैयार करने का है ताकि उनका मूल्यवर्धन, प्रसंस्करण और घरेलू तथा निर्यात बाजारों के लिए तैयार किया जा सके। इसका लक्ष्य एफपीओ के लिए ऋण और नकदी की पहुंच को सरल बनाना भी है। इसके लिए FPO इक्विटी ग्रांट फंड और FPO फॉर्मेशन फंड को जारी रखने की बात कही गई है।

FPO को कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF) योजना के तहत ब्याज राहत और ऋण गारंटी मिलनी जारी रह सकती है। इसके साथ ही नीति इन संगठनों में व्याप्त अक्षम प्रबंधन की पुरानी समस्या को भी हल करना चाहती है। इसमें अच्छे प्रबंधकों तक पहुंच, उन्हें आकर्षित करने और अपने साथ जोड़े रखने की दिक्कतें शामिल हैं। भारतीय कृषि लम्बे समय तक छोटी जोत की समस्या से ग्रस्त रही है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड के आंकड़े बताते हैं कि 85 प्रतिशत भूमि छोटे और सीमांत किसानों के पास है। आधुनिक मशीनों का उपयोग भी सीमित है।

असंगठित किसानों को अपनी फसल की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है। छोटे किसानों के पास मोलतोल करने की क्षमता नहीं होती। उनके पास इतनी सुविधा भी नहीं होती है कि अपनी उपज को भंडारित करके रख सकें ताकि उचित समय पर उसे अच्छे दाम पर बेचा जा सके। छोटे उत्पादकों के पास इतना कच्चा माल या इतनी उपज नहीं होती है कि वे बड़े पैमाने पर उत्पादन के समान लाभ हासिल कर सकें। कृषि बाजार में बिचौलियों की एक लम्बी श्रृंखला है, जो अक्सर अपारदर्शी ढंग से काम करते हैं, जिससे ऐसे हालात बनते हैं, जहां किसानों को उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमत का बहुत छोटा हिस्सा मिलता है। इसी कारण से किसानों की आय प्रभावित होती है।

FPO यहां बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं। हर FPO में एक निर्वाचित निदेशक मंडल होता है और इसका स्वामित्व किसानों के पास होता है। इसका लाभ अंशधारकों के बीच बंटता है। नाबार्ड, सरकारी विभाग और अन्य वित्तीय संस्थान इन सहकारी समितियों को वित्तीय और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराते हैं। ये FPO ऐसी कई परतों को समाप्त करते हैं, जो किसानों के खिलाफ जाती हैं। समेकन से किसानों को लाभ होता है। उन्हें अच्छी उपज भी मिलती है और अपनी उपज के बेहतर दाम भी मिलते हैं। उनके पास उपज के बड़े खरीदारों तथा कच्चे माल के बड़े आपूर्तिकर्ताओं के साथ मोलभाव करने की भी अच्छी क्षमता होती है।

FPO कच्चा माल खरीदते हैं, सदस्यों को बाजार से जुड़ी सूचनाएं प्रदान करते हैं, उनके लिए वित्तीय पहुंच सुनिश्चित करते हैं और आमतौर पर उनके पास भंडारण और प्रसंस्करण की सुविधा होती हैं। इसके अलावा वे ब्रांड बनाने, पैकेजिंग और बड़े खरीदारों के समक्ष उपज की मार्केटिंग में मदद करते हैं। किसान आमतौर पर उत्पादन तक सीमित रहते हैं जबकि बड़ा लाभ उत्पादन की अपेक्षा प्रसंस्करण और वितरण में है, जहां किसानों की भूमिका बहुत सीमित है। ऐसे में जरूरत यह भी है कि किसानों के बीच प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के प्रशिक्षण को लेकर भी निवेश किया जाए।

 

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