वरिष्ठ या घनिष्ठ को नहीं, बल्कि श्रेष्ठ को चुनिये
आपने ‘मूव’ का विज्ञापन तो देखा ही होगा। मसल्स पेन रिलीफ के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले मेडिकल प्रोडक्ट ‘मूव’ के विज्ञापन की टैगलाइन है- आपके घर में कौन रहता है? कमर दर्द या मूव।
वर्तमान परिपेक्ष्य में हम इस टैगलाइन को सहकारिता सेवा से जुड़ा हुआ देख रहे हैं, शब्दों का हेरफेर है, भावना वही है। आपके घर में कौन रहता है? सुकून या सनक।
गंदगी से बीमारियां फैलती हैं, इसलिए कोई भी अपने घर में गंदगी को पसंद नहीं करता। हमें भी नहीं करना है। सहकारिता सेवा और इससे जुड़े लोग ही हमारा परिवार हैं।
गंदे विचारों में, सडक़ों पर फैलने वाले कचरे से कहीं ज्यादा घातक कीटाणु होते हैं। खानपान की वस्तुओं की भांति विचारों की शुद्धता भी लाजिमी है। विचार तो दुग्ध की भांति शांत एवं सनिग्ध होने चाहिएं। मन भर दूध में यदि बूँद नीम्बू का रस गिर जाये तो पूरे दूध का सत्यानाश कर देता है। ‘काचर का बीज’ कहावत भी संभवत: ऐसी ही प्रवृत्ति वालों के लिए प्रयोग में लायी जाती है।
एक कहावत है, काले की संगत गोरा करे तो रंगत भले ही नहीं चढ़े लेकिन संगत जरूर चढ़ जाती है। इसलिए संगति भी हमेशा अच्छे लोगों की करनी चाहिए। चार सौ अधिकारियों के परिवार में यदि एक भी नेगेटिव किरदार शामिल हो जाये, और वो भी मुखिया के रूप में तो आप समझ सकते हैं कि परिवार की कैसी दुर्दशा हो सकती है। जो व्यक्ति अपने हाथों से, सहकारिता आंदोलन का, संस्थाओं का गला घोंट चुका हो, आप यदि उनकी गोदी को स्वयं के लिए सुरक्षित मान रहे हो तो यह आपकी गलतफहमी हो सकती है। आपको इस गलती और गलतफहमी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
कुछ साल पहले जुमलों के झांसे में आकर देश ने भी बड़ी भारी गलती थी, जिसकी कीमत आने वाले कई वर्षों तक देश और देशवासियों को चुकानी पड़ेगी। जनतंत्र में तानाशाही के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।
कुटिलता ही जिनकी पहचान है, धूर्तता जिनका लक्ष्ण है, जो मुंह में राम और बगल में छुरी रखने का शौक पालते हैं, यदि हम ऐसे लोगों की संगत में रहेंगे तो अपना ही आज और कल खराब करेंगे। जो अपने अहम की संतुष्टि केलिए सरकार की नीतियों पर सवाल उठा सकते हैं, जिनके सानिध्य में पोषित-पल्वित हुए, उन लोगों पर अंगुली उठा सकते हैं, ऐसे लोग आपके साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे।
उस धूर्त से हमेशा सावधान रहिए तो काम तो अपने मन का करना चाहता है, लेकिन बात आपके मन की करता हो। ऐसे झांसेबाजों से दूरी बनाकर रहने में ही भलाई है। जिन्होंने अपने सेवाकाल के दौरान संस्थाओं में नियम-कानून और कैडर को खूंटी पर टांगे रखा और सहकारिता आंदोलन को तार-तार कर दिया, जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया, उन लोगों से किसी अच्छे की उम्मीद करना, स्वयं को ही धोखा देना है।
सहकारिता सेवा वालों के पास सीमित समय शेष है, यह निर्णय लेने के लिए कि वरिष्ठ को चुनना है या श्रेष्ठ को? जात-पांत से ऊपर उठकर ही समाज और देश का भला किया जा सकता है। कुत्ते की नस्ल का चयन भी अपनी सुविधा देखकर किया जाता है, आपने तो अभिभावक का चुनाव करना है। गलत निर्णय लेकर खुद की नजर में गिरने से अच्छा है, सही का चुनाव करें। वरिष्ठता और घनिष्ठता के फेर में श्रेष्ठता को ठुकराना, घातक साबित हो सकता है। जय सहकार।