20 लाख लोगों की गाढ़ी कमाई हड़प गया मोदी का कुनबा
जयपुर (मुखपत्र)। आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव घोटाला भारत के बड़े घोटालों में शामिल किया जाता है, जिसमें तकऱीबन 20 लाख लोगों के खून पसीने की कमाई दांव पर लगी है।

Devaram
राजस्थान के सिरोही में रहने वाले 47 साल के देवाराम पेशे से किसान हैं।सब्जी उगाते हैं। पूरा परिवार खेत में मेहनत करता है। देवाराम सब्जियां सुबह मंडी में जाकर बेच देते हैं। उनके पास कुल 7 बीघा जमीन है जिसमें उसके अलावा 3 और भाइयों की साझेदारी हैं। देवाराम की तकलीफ यहीं खत्म नहीं होती। वो पांच बेटियों और 1 बेटे के पिता हैं। आम भारतीय पिता की तरह बेटियों की शादी उनके जीवन की भी सबसे बड़ी चिंता है।
करीब 2 साल पहले उनके पास सोनाराम नाम के एक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर आए. सोनाराम आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी (एसीसीएस) के लिए काम करते हैं। उन्होंने देवाराम को समझाया कि अगर उन्हें अपनी बेटियों की शादी करनी है तो उन्हें अभी से बचत शुरू कर देनी चाहिए। देवाराम को उनकी बात ठीक लगी। उन्होंने एसीसीएस के दैनिक बचत योजना में खाता खुलवा लिया। घर का खर्च निकालकर बाकी के पैसे वो इस खाते में जमा करवाने लगे। दो साल के भीतर पेट काटकर उन्होंने तकरीबन 2 लाख की रकम जोड़ ली। लेकिन खून-पसीना एक करके कमाया यह पैसा अब उन्हें कभी वापिस नहीं मिलेगा।
एक साल पहले हुआ था घोटाले का पर्दाफाश
26 मई 2018 को राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले का पर्दाफाश किया। पुलिस का दावा है कि एसीसीएस ने अपने 20 लाख निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की है और आम जनता को कुल 14 हजार 800 करोड़ का चूना लगाया है। एसीसीएस ने सिरोही, गुरुग्राम, मुंबई, अहमदाबाद और जयपुर में छापे डालकर 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया। इनमें सिरोही नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र मोदी, प्रियंका मोदी, वैष्णव लोढ़ा, कमलेश चौधरी, समीर मोदी, ईश्वर सिंह, भरत वैष्णव, ललिता राजपुरोहित, विवेक पुरोहित शामिल हैं। इस घोटाले के मास्टर माइंड कहे जाने वाले मुकेश मोदी और उनके बेटे राहुल मोदी को सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) पहले ही गिरफ्तार कर चुका है।
1999 में सिरोही में खुली पहली शाखा

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आदर्श को-ऑपरेटिव सोसायटी की पहली शाखा 1999 में सिरोही में खुली थी। पिछले 20 साल में यह संस्था वित्तीय लेन-देन में लगी हुई है। एसीसीएस की वेबसाईट पर दावा किया गया है कि देश के 26 राज्यों में इस संस्था की 900 से ज्यादा शाखाएं हैं। 20 लाख से ज्यादा लोगों ने सोसायटी की अलग-अलग स्कीम में निवेश कर रखा है। अब हालात यह हैं कि एसीसीएस इनमें से एक भी निवेशक का पैसा लौटाने में सक्षम नहीं है। 20 लाख निवेशकों के 14 हजार 800 करोड़ रूपए दांव पर लगे हुए हैं। तो आखिर इतना बड़ा फ्रॉड हुआ कैसे?
क्या है आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी?
इस कहानी की शुरुआत होती है 1992 में। सिरोही के एक रिटायर ग्रामसेवक थे प्रकाश राज मोदी। संघ की तरफ रुझान था। सेवानिवृत्ति के बाद संघ के अनुशांगिक संगठन ‘भारतीय किसान संघÓ से जुड़ गए। सिरोही जिला के संयोजक बना दिए गए। समाज में छवि ठीक थी। 1990 में भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। दशकों सत्ता से बाहर रहे संघ परिवार ने तमाम संस्थाओं में घुसपैठ करना शुरू किया। 1992 में ‘दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंकÓ के चुनाव हुए। उस समय बैंक की प्रबंधन समिति में 9 सदस्यों का चुनाव होता था। ये सदस्य मिलकर बैंक के चेयरमैन का चुनाव करते थे। प्रकाशराज मोदी पहले बैंक की प्रबंध समिति के सदस्य चुने गए। इस चुनाव में कुल 9 में से 7 सदस्य ऐसे थे जिनका रुझान संघ या बीजेपी की तरफ था। प्रकाश राज मोदी को प्रबंध समिति का अध्यक्ष बना दिया गया। अगले पांच साल इसी प्रबंध समिति को बैंक का प्रबंधन देखना था।
वर्ष 1994 में प्रकाश राज मोदी का इंतकाल हो गया। सहकारी समिति में प्रबंध समिति चलाने के कुछ कायदे हैं। इसमें से एक नियम यह कि अगर प्रबंध समिति के किसी सदस्य का निधन हो जाता है या वो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देता है तो उसकी जगह पर सहकारी समिति के किसी और सदस्य को प्रबंध समिति का सदस्य बना दिया जाता है। वर्तमान में इसे कोप्शन करना कहते हैं। नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए जाते। यही वो मोड़ था जिसने इस सहकारी बैंक के मुस्तकबिल को बदल दिया। प्रकाश मोदी की मौत के बाद उनके बड़े बेटे मुकेश मोदी को प्रबंध समिति का सदस्य मनोनीत किया गया और उन्हें सर्वसम्मति से प्रबंध समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया।

Mukesh Modi
प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनते ही मुकेश ने सबसे पहले बैंक का नाम बदलने की कवायद शुरू की। भारतयी रिजर्व बैंक को अर्जी देकर ‘दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंकÓ का नाम बदलकर ‘माधव नागरिक सहकारी बैंकÓ रख दिया गया। यह नाम आरएसएस के दूसरे सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर के नाम पर रखा गया था। मुकेश के इस एक कदम ने उन्हें आरएसएस के स्थानीय नेतृव की आंख का तारा बना दिया। यह बहुत सोचा-समझा कदम था। मुकेश खुद के लिए जरूरी राजनीतिक संरक्षण हासिल करने में कामयाब रहे। इसी राजनीतिक संरक्षण के दम पर उन्होंने अपने भाई वीरेंद्र मोदी को सिरोही नगर पालिका का अध्यक्ष बनवाया।
साल 1999 में मुकेश ‘माधव नागरिक सहकारिता बैंकÓ की प्रबंध समिति से हट चुके थे। उन्होंने अपनी जगह अपने भाई वीरेंद्र मोदी को प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनवा दिया। 1999 में मुकेश ने ‘क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटीÓ खोली, नाम रखा ‘आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटीÓ। यह सोसायटी मुख्य रूप से लोन देने का काम करती थी। लेकिन लोन देने के लिए इसके पास पैसा कहां से आता? दरअसल यह सहकारी समिति अपने सदस्य बनाती थी। ये सदस्य समिति के शेयर होल्डर होते थे। ये समिति में अपना कुछ पैसा निवेश करते। सोसायटी इस पैसे को ब्याज पर देती है। ब्याज के तौर पर जो मुनाफा आता है वो सोसायटी के शेयर होल्डर्स में बांट दिया जाता है।

Virender Modi
1999 में सूबे की सत्ता बदल चुकी थी लेकिन मुकेश मोदी का जलवा जस-का-तस कायम था। अशोक गहलोत के नेतृत्व में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चल रही थी और परसादीलाल मीणा सहकारिता मंत्री थे। मुकेश मोदी ने माधव नागरिक बैंक को सहकारिता विभाग से उन्मुक्त करवा लिया। माने 1999 के बाद माधव नागरिक बैंक में सहकारिता विभाग का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं रहा।
साल 2002 में केंद्र सरकार ने एक से ज्यादा राज्यों में चल रहे सहकारी बैंको के लिए बने कानूनों में बदलाव किया। इसे ‘मस्टी स्टेट को-ऑपरेटिव एक्ट-2002Ó नाम दिया गया। अब तक ‘माधव नागरिक सहकारी बैंकÓ पर मोदी परिवार का एकाधिकार हो चुका था। 2002 में आए नए एक्ट के तहत माधव नागरिक सहकारी बैंक का नए सिरे से रजिस्टर करवाया और बैंक का नाम बदलकर ‘आदर्श को-ऑपरेटिव बैंकÓ रख दिया। यह दांव बड़े काम का साबित हुआ। आने वाले समय आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी को आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक की एक शाखा की तरह आम लोगों के सामने पेश किया जाने लगा. जबकि तकनिकी तौर पर दोनों को कोई संबंध नहीं था। सिवाए इसके कि दोनों जगह पर मोदी परिवार काबिज था।

Rahul Modi
1995 में दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंक की प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनने से पहले मुकेश मोदी खुद एक बीमा एजेंट हुआ करता था। ओरिएंटल इंश्योरेंस, यूनाइटेड इंश्योरेंस जैसी कंपनियों के साथ उसने लम्बे समय तक काम किया था। कई लोग दबी जुबान में आरोप लगाते हैं कि मुकेश उस समय मवेशियों के फर्जी पोस्ट-मार्टम करवाने का मास्टर माना जाता था। इस तरह से इंश्योरेंस में फर्जीवाड़ा करके पैसे बनाने के लिए उसने बीमा एजेंट्स की एक गोलबंदी अपने इर्द-गिर्द तैयार कर ली। इस गोलबंदी ने क्रेडिट सोसायटी के काम को आगे बढ़ाने में उसकी बहुत मदद की। आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी का व्यापार तेजी से फैलना शुरू हुआ। अगस्त 2010 तक अंडमान-निकोबार और दादरा नगर हवेली को छोड़कर भारत के हर कोने में इसकी शाखाएं फैल चुकी थीं।
2001 में हुई थी पहली बार जांच
साल 2001 में आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी खुलने के महज दो साल के भीतर मोदी परिवार से जुड़ी पहली गड़बड़ी सामने आई। बैंकिंग रजिस्ट्रार को माधव नागरिक बैंक के बारे में लगातार शिकायत मिल रही थी। बैंकिंग रजिस्ट्रार ने इस मामले पर एक डिपार्टमेंटल जांच बैठाई। जांच करने का जिम्मा दिया गया अनिल गर्ग को। गर्ग 2 अप्रैल 2001 को जांच के लिए सिरोही पहुंचे। वो कुल चार दिन वहां ठहरे।
जांच के दूसरे दिन ही समझ में आ गया कि यह जांच आसान नहीं होने वाली है। वो सिरोही के सर्किट हाउस में रुके हुए थे। दूसरे दिन जैसे ही वो जांच के लिए निकले पीछे से उनका सारा सामान निकालकर कमरे से बाहर रख दिया गया और रिकॉर्ड में रूम को खाली दिखा दिया गया। चीजें यहीं नहीं रुकी। उनके पीछे आदमी तैनात किए गए। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर मुकेश मोदी के इशारे पर गुंडे खड़े किए गए। गर्ग के सामने 20 लाख की रिश्वत का ऑफर भी रखा गया लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। गर्ग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में माधव नागरिक बैंक के भीतर चल रहे बड़े गड़बड़झाले का पर्दाफाश किया। गर्ग ने अपनी जांच में कई स्तर पर गड़बड़ी पाई :-
1. माधव नागरिक बैंक की ऋण देने की कोई लिखित पॉलिसी नहीं थी। जबकि आरबीआई के निर्देशों के अनुसार ऐसा होना जरुरी था।
2. कई खातों में क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए संदिग्ध लेन-देन हुआ था। मसलन रिद्धि-सिद्धि वाइन्स की मालकिन इंदु टांक के खाते में 23 मार्च 2001 के दिन 2 करोड़ दस लाख जमा करवाए गए। फिर उस रकम से उदयपुर के आबकारी विभाग के नाम 11 अलग-अलग रकम के ड्राफ्ट बनवाए गए। इसके तीन दिन बाद इन ड्राफ्ट्स को कैंसिल करवा लिया गया और नकद रकम खाते से निकाल ली गई।
3. कई खाताधारकों की क्रेडिट लिमिट समय-समय पर बढ़ाई गई।
4. ऋण लेने के लिए जो जमीन के कागजात जमा करवाए गए थे, वो फर्जी थे।
5. आरबीआई के नियमों के मुताबिक ऋण लेने के लिए आपको कम से कम डेढ़ गुना कीमत की चीज गिरवी रखनी होती है। 14 में 12 खाताधारकों ने जमीन गिरवी रखकर लोन लिया था। माधव नागरिक बैंक ने इन जमीनों की कीमत बाजार भाव से कहीं ज्यादा लगाई ताकि ज्यादा से ज्यादा लोन दिया जा सके।
अनिल गर्ग ने अपनी जांच रिपोर्ट में 14 ऐसे खाताधारकों के नाम लिखे जिन्हें बैंकिंग के नियमों को ताक पर रखकर ऋण दिया गया। ये सभी शराब के व्यवसाय से जुड़े हुए लोग थे। इन सब लोगों को 8 करोड़ 60 लाख से ज्यादा का ऋण दिया गया था जिसमें क्रेडिट लिमिट को समय-समय पर बढाया गया था। गर्ग ने अपनी रिपोर्ट में विस्तृत जांच करवाने की बात कही थी लेकिन यह रिपोर्ट दबा दी गई।
बाद में यह रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गई। काफी हंगामा भी हुआ। इसके तुरंत बाद मुकेश मोदी ने माधव नागरिक बैंक को मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव के तौर पर रजिस्टर करवा लिया और अहमदाबाद को अपना मुख्यालय बना लिया। अगर उस समय इन पर ठीक से कार्रवाई हो जाती तो शायद आज 20 लाख लोग धोखाधड़ी से बच जाते।
वीरेंद्र मोदी बने नगर पालिका अध्यक्ष
इधर संघ का समर्थन भी उन्हें मिलता रहा। समाज में अपनी छवि चमकाने के लिए मुक्तहस्त से खर्च भी कर रहे थे। गुजरात भूकंप के समय माधव नागरिक बैंक ने 15 लाख रूपए का चंदा दिया था। साल 2000 में मुकेश मोदी के भाई वीरेंद्र मोदी नगर पालिका अध्यक्ष बन गए।
अब बैंकिंग सेक्टर के साथ-साथ जमीन और रियल स्टेट में भी मुकेश मोदी की दखल बढ़ गई। इसने मुकेश मोदी को पैसा पैदा करने का सुनहरा अवसर दिया। जमीनों पर अवैध तरीके से कब्जा और फिर उन जमीनों पर लोन उठाकर उन्होंने इस दौर में काफी पैसा बनाया। मुकेश को यहां से सत्ता में रहने के फायदे समझ में आने लगे। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का टिकट लेने के लिए उसने पूरा जोर लगा दिया।
लोकसभा के लिए ठोकी दावेदारी
उस समय मुकेश मोदी के करीबी रहे एक आदमी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, मुकेश मोदी ने संघ के साथ अपने रिश्तों का फायदा लेते हुए बीजेपी में अपनी स्थिति मजबूत कर ली. 2004 के चुनाव में वीरेंद्र मोदी की टिकट लगभग तय हो चुकी थी, लेकिन अभी के मौजूदा सांसद देवजी पटेल ने माधव नागरिक बैंक में चल रही वित्तीय गड़बड़ी के बारे में शीर्ष नेतृत्व को सारी जानकारी दे दी। इसके चलते वीरेंद्र मोदी का टिकट कट गया और मुकेश मोदी हाथ मलते रह गए।
187 फर्जी कम्पनियां बनायी
एक ओर मुकेश मोदी राजनीति में अपना हाथ आजमा रहे थे और दूसरी तरफ एसीसीएस का कारोबार लगातार बढ़ रहा था। आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक पर भी इस परिवार का एकाधिकार बना हुआ था। साल 2009 में आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक ने गुजरात के घाटे में चल रहे दो सहकारी बैंकों का अधिग्रहण कर लिया। पहला था ‘डीसा नागरिक सहकारी बैंकÓ और दूसरा था सुरेन्द्र नगर का ‘मर्केंटाइल सहकारी बैंकÓ। इससे आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी को गुजरात में अपना कारोबार मजबूती से करने का मौक़ा मिल गया।
एसीसीएस के पर्याप्त विस्तार के बाद शेल कंपनी या फर्जी कम्पनी बनाने का खेल शुरू हुआ। गुडग़ांव में एक पता है ‘शॉप नम्बर जी-1-116-जी सुशांत शॉपिंग आर्केड बिल्डिंग, सुशांत लोक फेज-1, गुरुग्राम, हरियाणा-122002Ó। इस जगह पर मुकेश मोदी, उसके परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के नाम पर कुल 33 कम्पनियां रजिस्टर्ड हैं जबकि यह महज 12*15 स्क्वेयर फीट की एक छोटी सी दुकान है।
जब पुलिस ने इस पते पर छापा मारा तो उनकि मुलाकात बंगाल के रहने वाले 21 साल के नौजवान मोतीउल मलिक से हुई। मोतीउल ने अपने बयान में बताया कि उसका काम सुबह 10 से 6 के बीच इस दुकान पर बैठना है। वो इस पते पर आने वाली सारी डाक इकठ्ठा करके गुरुग्राम स्थित दूसरे दफ्तर में पहुंचा देता था। इस दुकान के मालिक के बारे में तफ्तीश करने पर पता लगा कि इस दुकान की मालकिन प्रियंका मोदी हैं जोकि मुकेश मोदी की बेटी हैं।

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मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी की धारा 25 कहती है कि कोई भी सहकारी समिति केवल अपने सदस्य को लोन दे सकती है। किसी भी संस्था को ऋण नहीं दे सकती। इस नियम को ताक पर रखते हुए इन 187 फर्जी कम्पनियों को कुल 12, 414 करोड़ रूपए का लोन दिया गया।
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एसीसीएस अपने इन्वेस्टमेंट एडवाईजर को कुल इन्वेस्टमेंट का 20 फीसदी हिस्सा कमीशन में देती है। यह बाजार में मौजूद दूसरी लोन देने वाली संस्थाओं से कई गुना ज्यादा है। एसीसीएस की बैलेंस शीट दिखाती है कि पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा कमीशन महावीर कंसल्टेंसी नाम की एक फर्म को गया है जिसका ब्यौरा कुछ इस तरह से है-
2015-16 : 59,36,33,053 रुपये
2016-17 : 1,94,69,35,781 रुपये
2017-18 : 4,06,68,00,113 रुपये
कुल : 6,60,73,68,948 ( छ: अरब साठ करोड़ तिहत्तर लाख अडसठ हज़ार नौ सौ अड़तालीस) रुपये
माने कमीशन के नाम पर एक फर्म ने तीन साल में 660 करोड़ से ज्यादा रूपए कमाए। यह कंसल्टेंसी के क्षेत्र में नया कीर्तिमान होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है। जब इस फर्म की डिटेल निकाली गई तो पता लगा कि यह भी सुशांत लोक फेज-1 की उसी 12*15 स्क्वेयर फीट की दुकान के पते पर रजिस्टर है। इस फर्म को दो साझीदार चलाते हैं। पहले हैं वैभव लोढ़ा जो कि रिश्ते में मुकेश मोदी के दामाद लगते हैं। दूसरी साझीदार हैं मीनाक्षी मोदी जोकि मुकेश मोदी की पत्नी हैं।
इस घोटाले के सामने आने के बाद मुकेश मोदी के बेटे राहुल मोदी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक फोटो भी खूब वायरल हो रही है। इस फोटो में राहुल प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत करते दिखाई दे रहे हैं। मुकेश मोदी और उनके परिवार की संघ और बीजेपी से नजदीकी छुपी हुई नहीं है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पूरे सिरोही शहर में मुकेश मोदी के पोस्टर और होर्डिंग लगे हुए थे। प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले लोग बताते हैं कि 2014 में मुकेश मोदी को बीजेपी का टिकट मिलना लगभग तय था, लेकिन देवजी पटेल ने 2004 में चला दांव एक बार फिर से दोहरा दिया। उन्होंने 2010 में मुकेश मोदी के खिलाफ हुई आयकर विभाग की जांच का हवाला दिया। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में मुकेश मोदी ने बीजेपी की प्रत्याशी तारा भंडारी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के संयम लोढ़ा को अपना समर्थन दिया था। देवजी पटेल ने इसे भी मुकेश मोदी के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया। लिहाजा मुकेश मोदी एक बार पुन: हाथ मलते रह गया।

Rahul Modi with PM Narender Modi
हमारी चिंता मुकेश मोदी की बजाए सब्जी ढोते-ढोते खुरदुरे पड़ चुके देवाराम के हाथों की है। उनकी गाढ़ी कमाई के 2 लाख रूपए डूबते दिखाई दे रहे हैं। इन 187 फर्जी कंपनियों की बैलेंस शीट में अब मामूली रकम बची हुई हैं। ऐसे में जांच एजेंसियों को निवेशकों के धन की रिकवरी करना असंभव टास्क नजर आ रहा है।
मुकेश मोदी भारत में हैं और फिलहाल सलाखों के पीछे हैं। ये तथ्य देवाराम को थोड़ा सुकून जरुर दे सकता है लेकिन उन्हें अपनी बेटियों की शादी के लिए नए सिरे से पैसा जोडऩा होगा। (लल्लपटॉप से साभार)