जोधपुर, 22 जनवरी (मुखपत्र)। राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि केंद्रीय सहकारी बैंक के आयु को कम करने के बाद के ‘अतार्किक’ निर्णय के कारण सेवा से बाहर रहने वाले सेवानिवृत्ति कर्मचारी उक्त अवधि के लिए वेतन के हकदार हैं। बैंक ने एक प्रस्ताव पारित किया। इसमें सेवानिवृत्ति की आयु 60 से घटाकर 58 वर्ष कर दी गई। जस्टिस रेखा बोराना ने कहा, ‘याचिकाकर्ता उस अवधि के लिए वेतन के हकदार होंगे, जिसके दौरान वे सेवा से बाहर रहे। उन्हें इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर भुगतान किया जाए।’
उच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात, बैंक के संचालक मंडल ने 18 जुलाई 2011 को पुन: एक प्रस्ताव पारित कर, कार्मिकों की सेवानिवृत्ति आयु 58 साल ही नियत कर दी। इसे फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी, जिस पर कोर्ट ने 6 सितम्बर 2011 को स्थनगादेश पारित कर दिया। प्रभावित कार्मिकों ने कोर्ट के स्टे ऑर्डर के आधार पर पुन: सर्विस ज्वाइन कर ली। उपरोक्त याचिका के अदालत में विचाराधीन रहते ही, बैंक ने पुन: एक प्रस्ताव पारित कर सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर पहले की भांति 60 वर्ष कर दी।
‘नो पे नो वर्क’ का सिद्धांत लागू नहीं होता
प्रभावित कर्मचारियों – कैलाशचंद्र अग्रवाल, जगदीश प्रसाद शर्मा, भगवती लाल, जयदेव देवपुरा और भागचंद जैन की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने फैसला सुनाया कि यदि उक्त अवधि के भीतर वेतन का भुगतान नहीं किया जाता तो यह 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज के साथ देय होगा। याचिका में राजस्थान सरकार, सहकारिता विभाग और भीलवाड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक को पार्टी बनाया गया था।
अदालत ने अपने इस निर्णय में, उत्तर प्रदेश राज्य बनाम दयानंद चक्रवर्ती और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि यदि किसी कर्मचारी को अपने कर्तव्यों का पालन करने से नियोक्ता द्वारा रोका जाता है, तो कर्मचारी को काम नहीं करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ऐसे कर्मचारी पर ‘नो पे नो वर्क’ का सिद्धांत लागू नहीं होगा।
2010 और 2011 में सेवानिवृत्त आयु घटाने का प्रस्ताव किया था पारित
यह प्रकरण भीलवाड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक लि. से सम्बंधित है। भीलवाड़ा सीसीबी ने 25 मई 2010 को एक प्रस्ताव पारित किया। इसके तहत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से घटाकर 58 वर्ष कर दी गई। हालांकि, एक रिट याचिका दायर करने के बाद बैंक को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया। इसके बाद 18 जुलाई 2011 को एक और प्रस्ताव पारित किया गया।
इसमें सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष निर्धारित करने के पहले के निर्णय को दोहराया गया। इसे फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी, जिस पर कोर्ट ने 6 सितम्बर 2011 को स्थनगादेश पारित कर दिया। सुनवाई के दौरान ही बैंक की ओर से अदालत को बताया गया कि सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष से बढ़ाकर 60 वर्ष की जाएगी।
इसके पश्चात बैंक द्वारा पुन: प्रस्ताव पारित कर सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष कर दी गयी। तदानुसार, याचिकाओं को निष्फल होने के कारण खारिज कर दिया गया।
विवादित अवधि में कुछ कार्मिकों को वेतन-भत्तों से वंचित कर दिया था
बाद में याचिकाकर्ताओं को उस अवधि के वेतन से वंचित कर दिया गया, जिस दौरान वे बैंक द्वारा प्रस्तावों को पारित किए जाने के कारण सेवा से बाहर रहे। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि यह केवल बैंक द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण के आधार पर है कि पहले की रिट याचिका को निष्फल के रूप में प्रस्तुत किया गया, क्योंकि बैंक ने प्रस्ताव के अनुसरण में परिणामी लाभ का भी वादा किया था।
उन्होंने तर्क दिया कि कैलाश चंद्र शोत्रिया और हरीश चंद्र जोशी नाम के दो कर्मचारियों को बैंक द्वारा विवादित अवधि के वेतन के बकाया का भुगतान किया गया और वर्तमान याचिकाकर्ताओं को बिना किसी ठोस कारण के इसे अस्वीकार कर दिया गया।
प्रतिवादी-बैंक के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं ने इस अवधि के दौरान काम नहीं किया, इसलिए वे ‘नो पे नो वर्क’ के सिद्धांत पर वेतन के हकदार नहीं हैं। हालांकि, उन्होंने याचिकाकर्ताओं द्वारा नामित अन्य दो कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के तथ्य पर विवाद नहीं किया, लेकिन प्रस्तुत किया कि यह चिकित्सा आधार पर है।
बिना किसी ठोस तर्क प्रस्ताव पारित किया गया
अदालत ने कहा कि प्रतिवादी बैंक ने बिना किसी तर्क या कारण के 25 मई 2010 और 18 जुलाई 2011 के प्रस्तावों को पारित किया। इसमें बाद में न्यायालय ने हस्तक्षेप किया। अदालत ने कहा कि बैंक ने 16 दिसम्बर 2013 को स्व-हित के लिए प्रस्ताव पारित किया और इस स्पष्ट समझ के साथ कि लाभ उन कर्मचारियों को भी दिया जाएगा जो उस समय तक सेवानिवृत्त हो चुके हैं। कोर्ट ने कहा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दयानंद चक्रवर्ती के मामले (सुप्रा) में निर्धारित अनुपात के मद्देनजर, यह माना जाता है कि वर्तमान याचिकाकर्ता उस अवधि के लिए वेतन के हकदार होंगे, जिसके दौरान वे सेवा से बाहर रहे।’ (input-livelaw)