नई दिल्ली, 10 फरवरी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आंदोलनकारियों को आंदोलनजीवी बताने के अपने बयान पर बुधवार को बैकफुट पर दिखे। बुधवार को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान बोलते हुए प्रधानमंत्री ने अपने दो दिन पुराने बयान पर सफाई देने का प्रयास किया।
सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री किसान आंदोलन को लेकर बेहद आक्रमक दिखे थे और उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले वर्गों को आंदोलनजीवी परजीवी का दर्जा दे डाला था। इसके बाद से आंदोलनजीवी शब्द पर बहस चल निकली। जिन्हें आंदोलनजीवी बोला गया था, उन्होंने आजादी के आंदोलन से लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों सहित विभिन्न आंदोलन, निर्भया कांड को लेकर देशभर में हुए आंदोलन का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री से सवाल किया कि क्या वे सब लोग भी आंदोलनजीवी थे?
अब किसान आंदोलन को पवित्र बताया
बुधवार को पीएम मोदी ने किसान आंदोलन को पवित्र बताया और इस दौरान आंदोलनकारियों और आंदोलनजीवियों में अंतर बताने की कोशिश की। मोदी ने कहा, मैं किसान आंदोलन को पवित्र मानता हूं। भारत के लोकतंत्र में आंदोलन का महत्व है, लेकिन आंदोलनजीवी पवित्र आंदोलन को अपने लाभ के लिए अपवित्र कर रहे हैं। किसानों के पवित्र आंदोलन को बर्बाद करने का काम आंदोलनकारियों ने नहीं, आंदोलनजीवियों ने किया है। आंदोलनकारियों और आंदोलनजीवियों में फर्क करना जरूरी है।
किसान गलत धारणाओं के शिकार
प्रधानमंत्री ने कहा, किसान गलत धारणाओं के शिकार हैं, हालांकि उनका आंदोलन पवित्र है। जब आंदोलनजीवी पवित्र आंदोलन को अपने फायदे के लिए बर्बाद करने निकलते हैं तो क्या होता है? उन्होंने कहा, दंगाबाज, सम्प्रदायवादी, नक्सलवादी जो जेल में बंद हैं, किसान आंदोलन में उनकी मुक्ति की मांग करना कहां तक सही है? क्या टोल प्लाजा तोडऩे, टेलिकॉम टॉवर तोडऩे जैसे तरीके पवित्र आंदोलन को अपवित्र करने का प्रयास नहीं हैं?