नई दिल्ली, 19 अगस्त। केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय की एक आंतरिक जांच में देश में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के आधे से अधिक मामले फर्जी पाये जाने के बाद, अब इस प्रकरण की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भेजी गयी है। जिन राज्यों में बड़े पैमाने पर माइनॉरिटी स्कॉलरशिप के मामले फर्जी पाये गये हैं, उनमें राजस्थान, असम, कनार्टक, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं, हालांकि मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट में 34 राज्यों में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के मामले फर्जी पाये जाने का जिक्र है।
मंत्रालय की आंतरिक जांच के दौरान 34 राज्यों के 100 जिलों में माइनॉरिटी शिक्षा संस्थानों का रिकार्ड खंगाला गया। जांच में शामिल किये गये 1572 संस्थानों में से 830 में फर्जीवाड़ा सामने आया है। मंत्रालय ने जो प्रकरण सीबीआई को जांच के लिए भेजा है, वो 21 राज्यों से ही सम्बद्ध है, शेष 13 राज्यों के मामलों की जांच अभी तक मंत्रालय में भी लम्बित है।
144 करोड़ रुपये का घोटाला
लाइव हिन्दुस्तान ने इंडिया टुडे की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि अल्पसंख्यक मंत्रालय की आंतरिक जांच में 830 संस्थाओं में बड़े भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है, जिसकी रकम 144 करोड़ 83 लाख रुपये आंकी गयी है। केंद्रीय मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी से इस मामले को जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भेज दिया है।
बैंकों ने खोल दिये लाभार्थियों के फर्जी खाते
अल्संख्यक मंत्रालय का माइनॉरिटी स्कॉरशिप प्रोग्राम लगभग 1 लाख 80 हजार संस्थानों में लागू है, जिसमें पहली कक्षा से लेकर उच्च शिक्षा शामिल है। कार्यक्रम की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए इन संस्थानों से फर्जी लाभार्थियों के माध्यम से हर साल अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति का दावा किया गया। यह कार्यक्रम साल 2007-08 में आरम्भ किया गया था। मंत्रालय से यह सवाल भी उठाया है कि बैंकों ने फर्जी आधार कार्ड और केवाईसी दस्तावेजों के साथ लाभार्थियों के फर्जी खाते खोलने की अनुमति कैसे दी।
जांच में शामिल अधिकांश संस्थान फर्जी या निष्क्रिय मिले
रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ राज्य के जांच में शामिल किये गये सभी 62 संस्थान फर्जी या निष्क्रिय पाये गये। राजस्थान में जांच में शामिल 128 में से 99 अल्पसंख्यक संस्थान निष्क्रिय या फर्जी मिले। इसी प्रकार असम में 68 प्रतिशत, कर्नाटक में 64 प्रतिशत और उत्तरप्रदेश में 44 प्रतिशत संस्थान फर्जी या निष्क्रिय मिले। पंजाब में भी फर्जी प्रकरण सामने आये, जहां नामांकन नहीं होने के बावजूद छात्रवृत्ति मिलती रही।