स्क्रीनिंग, ऋण पर्यवेक्षक पद पर चयन के स्थान पर पदोन्नति, संविदा पारिश्रमिक, 2 प्रतिशत ब्याज मार्जिन जैसे मुद्दे शामिल
जयपुर, 15 जून (मुखपत्र)। वर्तमान में राज्य सरकार की ऋण नीति के कुछ प्रावधानों से अंसतुष्ट होकर भले ही राजस्थान के पैक्स/लैम्पस कर्मचारियों ने आंदोलन का बिगुल बजा रखा हो, लेकिन इस माहौल में भी सरकार और सहकारिता विभाग के स्तर पर पैक्स कार्मिकों, जिनमें व्यवस्थापक, सहायक व्यवस्थापक और सैल्समैन आदि कर्मचारी शामिल हैं, के हित में और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए बेहतरीन निर्णय हो सकते हैं।
‘मुखपत्र’ द्वारा सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार डॉ. नीरज के. पवन और अपेक्स बैंक के प्रबंध निदेशक इन्दर सिंह से पिछले कुछ समय से हर मुलाकात के दौरान पैक्स/लैम्पस कार्मिकों की मांगों पर विस्तार से चर्चा की गयी और उनकी कुछ लम्बित व बहुप्रतीक्षित मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने के लिए निवेदन किया गया।
इन मांगों में मुख्य रूप से नियोक्ता निर्धारण, स्क्रीनिंग से वंचित व्यवस्थापकों की स्क्रीनिंग, स्क्रीनिंग की तिथि तक दो वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर चुके कार्मिक को स्क्रीनिंग प्रक्रिया में शामिल करना, रजिस्ट्रार कार्यालय से संविदा कर्मियों के लिए 21/12/2018 को जारी आदेश को पैक्स/लैम्पस में लागू करना, व्यवस्थापक से ऋण पर्यवेक्षक के पद को चयन नहीं मानकर पदोन्नति मानते हुए दो वेतनवृद्धियों का लाभ देना, व्यवस्थापक से ऋण पर्यवेक्षक पद पर पदोन्नति के लिए स्क्रीनिंग के पश्चात पांच वर्ष की अनिवार्यता समाप्त कर, मुख्य कार्यकारी के पद पर स्क्रीनिंग सहित कुल पांच वर्ष का अनुभव रखने, अल्पकालीन ऋण वितरण पर समितियों को मिलने वाले 2 प्रतिशत ब्याज मार्जिन को हर सीजन में एडवांस में समितियों को उपलब्ध करवाना आदि मांगे शामिल हैं। इनमें से रजिस्ट्रार कार्यालय और अपेक्स बैंक स्तर के अधिकांश मुद्दों पर रजिस्ट्रार डॉ. नीरज के. पवन और अपेक्स बैंक एमडी इन्दर सिंह सैद्धांतिक रूप से सहमत दिखाई देते हैं।
इन मांगों में मुख्य रूप से नियोक्ता निर्धारण, स्क्रीनिंग से वंचित व्यवस्थापकों की स्क्रीनिंग, स्क्रीनिंग की तिथि तक दो वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर चुके कार्मिक को स्क्रीनिंग प्रक्रिया में शामिल करना, रजिस्ट्रार कार्यालय से संविदा कर्मियों के लिए 21/12/2018 को जारी आदेश को पैक्स/लैम्पस में लागू करना, व्यवस्थापक से ऋण पर्यवेक्षक के पद को चयन नहीं मानकर पदोन्नति मानते हुए दो वेतनवृद्धियों का लाभ देना, व्यवस्थापक से ऋण पर्यवेक्षक पद पर पदोन्नति के लिए स्क्रीङ्क्षनग के पश्चात पांच वर्ष की अनिवार्यता समाप्त कर, मुख्य कार्यकारी के पद पर स्क्रीनिंग सहित कुल पांच वर्ष का अनुभव रखने, अल्पकालीन ऋण वितरण पर समितियों को मिलने वाले 2 प्रतिशत ब्याज मार्जिन को हर सीजन में एडवांस में समितियों को उपलब्ध करवाना आदि मांगे शामिल हैं।
पैक्स कार्मिकों की स्क्रीनिंग
अधिकारियों ने संकेत दिये हैं कि स्क्रीनिंग से वंचित कार्मिकों की स्क्रीनिंग के आदेश अतिशीघ्र जारी कर दिये जाएंगे। चूंकि स्क्रीनिंग की शर्तों में किसी प्रकार की छूट देना राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है, इसलिए इसकी पत्रावली मंत्री को प्रस्तुत की जाकर युक्तियुक्त निर्णय लिया जायेगा। इसी प्रकार सहकारिता मंत्री की स्वीकृति के पश्चात रजिस्ट्रार द्वारा व्यवस्थापक से ऋण पर्यवेक्षक के पद पर चयन के स्थान पर पदोन्नति के आदेश भी जल्द जारी होने की संभावना है। इसमें विभाग को किसी प्रकार की आपत्ति नजर नहीं आ रही।
पदोन्नति माना जाये ऋण पर्यवेक्षक का पद
उच्चाधिकारियों का मानना है कि जब ऋण पर्यवेक्षक के पद शत-प्रतिशत व्यवस्थापक से ही भरे जाने हैं तो इसे चयन का नाम क्यों दिया गया है। यह स्पष्ट तौर पर पदोन्नति का प्रकरण है। इसलिए पदोन्नति पर नियमानुसार, दो वेतनवृद्धियों का लाभ मिलना ही चाहिए। इसके अलावा विभाग, पैक्स कार्मिकों की मांग पर व्यवस्थापक से ऋण पर्यवेक्षक पद के लिए अनुभव की स्पष्ट व्यख्या भी कर सकता है।
रजिस्ट्रार से, ऋण पर्यवेक्षक पद पर चयन के सम्बंध में रजिस्ट्रार कार्यालय से दिनांक 23 अगस्त 2018 को जारी आदेश की स्पष्ट व्याख्या करने और चयन के स्थान पर पदोन्नति शब्द लिखे जाने का आग्रह भी किया गया। रजिस्ट्रार डॉ. नीरज और अपेक्स एमडी इन्दर ङ्क्षसह द्वारा इन दोनों बिन्दुओं पर शीघ्र स्पष्टीकरण जारी करने पर सहमति जतायी।
उच्चाधिकारियों ने संकेत दिये कि केंद्रीय सहकारी बैंकों से सूचनाएं संकलित कर, ऋण पर्यवेक्षक पद के लिए राजस्थान सहकारी भर्ती बोर्ड को अनुशंसा प्रेषित करने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
समितियों में लागू हो सकता है 21/12/2018 का आदेश
अधिकारियों के ध्यान में लाये जाने के पश्चात कि कहीं-कहीं मुख्य कार्यकारी का वेतन तो 50 हजार रुपये से अधिक है, लेकिन सहायक व्यवस्थापक व सैल्समैन को पांच से छह हजार रुपये ही मिल रहे हैं, जो कि कुशल श्रमिक की मजदूरी से भी कम है, रजिस्ट्रार ने संकेत दिये कि इसके लिए शीघ्र ही सर्वसम्मत रास्ता निकाला जायेगा। संभव है कि विभाग सहकारी बैंकों में संविदा कर्मियों के पारिश्रमिक के सम्बंध में जारी 21 दिसम्बर 2018 का आदेश पैक्स/लैम्प्स में भी लागू कर दे, हालांकि ये केवल सक्षम समितियों के लिए ही होगा।
अग्रिम मिल सकता है 2 प्रतिशत ब्याज मार्जिन
सरकार द्वारा केंद्रीय सहकारी बैंकों के माध्यम से पैक्स/लैम्प्स को दिये जाने वाला 2 प्रतिशत ब्याज मार्जिन आगामी सीजन से समितियों को एडवांस मिल सकता है, ताकि उनके वेतन-भत्तों में अनावश्यक विलम्ब नहीं हो। सहकारिता विभाग इस पर भी गंभीरता से विचार कर रहा है। अल्पकालीन फसली ऋण वितरण पर राज्य सरकार द्वारा 4 प्रतिशत एवं केंद्र सरकार द्वारा 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान मिलता है।
सीसीबी द्वारा राज्य सरकार से 4 प्रतिशत ब्याज अनुदान मिलने के पश्चात, उसमें से 2 प्रतिशत राशि समितियों को जारी की जाती है। इसी से समिति कर्मचारियों के वेतन-भत्तों व अन्य खर्चों का भुगतान किया जाता है। राज्य सरकार द्वारा इस साल 31 मार्च 2019 को 4 प्रतिशत ब्याज अनुदान नहीं दिये जाने के कारण समिति कार्मिकों के समक्ष वेतन के लाले पड़ गये हैं। इसेे देखते हुए रजिस्ट्रार द्वारा आगामी सीजन से 2 प्रतिशत ब्याज मार्जिन, सीजन के प्रारंभ में जारी करने पर विचार किया जा रहा है।
अन्य योजनाओं पर विचार
अपेक्स एमडी इन्दर सिंह का भी मानना है कि ऋण माफी के पश्चात केवल अल्पकालीन ऋण वितरण से होने वाली आय के आधार पर समितियों का संचालन कर पाना संभव नहीं है, इसलिए समितियों के आर्थिक स्वावलम्बन के लिए नाबार्ड एवं कृषि विभाग की योजनाओं को समितियों के माध्यम से लागू करवाने की संभावना तलाशी जा रही है।
नियोक्ता निर्धारण
सहकारिता विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, नियोक्ता निर्धारण के विषय पर सरकार व संगठनों के बीच कॉमन कैडर के गठन पर सहमति हो चुकी है। इसके लिए एक्ट में संशोधन की आवश्यकता है, जिसका प्रस्ताव आगामी विधानसभा सत्र में लाया जा सकता है। लेकिन अब यह सब, पैक्स कार्मिकों के संगठनों के रुख पर निर्भर है।