प्रभावी पैरवी के अभाव में बैंक के खिलाफ निर्णय पारित हुआ तो अधिकारी स्वयं जिम्मेदार होंगे
जयपुर, 19 फरवरी (मुखपत्र)। विभिन्न अदालतों में लम्बित प्रकरणों को गंभीरता से नहीं लेने एवं उचित पैरवी के अभाव में केंद्रीय सहकारी बैंकों के विरुद्ध हाल ही में गंभीर प्रवृत्ति के निर्णय पारित किये हैं। विशेषकर पैक्स और लैम्प्स के मामले में केंद्रीय सहकारी बैकों के खिलाफ फैसले सुनाये गये हैं। रजिस्ट्रार डॉ. नीरज कुमार पवन ने इसे गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रबंध निदेशकों को स्पष्ट शब्दों में चेताया है कि यदि पैरवी और मोनेटरिंग के कारण विभाग अथवा संस्थाओं के विरुद्ध निर्णय पारित किया जाता है तो इसके लिए अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार होंगे।
रजिस्ट्रार डॉ. पवन ने हाल ही में एक पत्र जारी कर इस बात पर चिंता जतायी कि विभिन्न अदालतों में विचाराधीन कई प्रकरण अतिमहत्वपूर्ण एवं गंभीर प्रवृत्ति के हैं, जिनमें बैंकों द्वारा प्रभावी पक्ष प्रस्तुत नहीं किये जाने के कारण विपरीत फैसला सुनाया जा सकता है। इससे बैंकों को भारी वित्तीय हानि होने की आशंका है। साथ ही इन मामलों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर अन्य वाद भी न्यायालयों में दायर किये जा सकते हैं।
रजिस्ट्रार ने कहा है कि केवल प्रभारी अधिकारी या सहायक प्रभारी अधिकारी नियुक्त कर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने वाला रवैया अब नहीं चलेगा। प्रबंध निदेशक को स्वयं इन प्रकरणों की क्लोज मोनेटरिंग करनी होगी, साथ ही इन प्रकरणों को लाइट्स की वेबसाइट पर अपलोड करना होगा।
डॉ. नीरज ने निर्देश दिये कि विभिन्न केंद्रीय सहकारी बैंकों से सम्बद्ध एक ही प्रकृति वाले प्रकरणों में वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति की जावे। न्यायालयों में बैंक का पक्ष सुदृढ़ ढंग से पेश किया जाये। विभाग से किसी प्रकार के मार्गदर्शन की जरूरत होने पर तत्काल सूचित किया जाये।
ये प्रकरण हैं लम्बित
जोधपुर एवं जयपुर उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रकरण लम्बित हैं। इनमें अधिकांश प्रकरण कैडर व्यवस्थापकों द्वारा स्वयं को बैंक कर्मचारी बनाए जाने के लिए दायर किये गये हैं। उच्च न्यायालयों ने कुछ प्रकरणों में बैंकों के विरुद्ध निर्णय भी पारित कर दिये हैं, जिनकी अपील डिवीजन बैंच या सुप्रीम कोर्ट में की जा चुकी है। कई निचली अदालतों में भी विभिन्न प्रकृत्ति के प्रकरण विचराधीन हैं। इनमें व्यवस्थापकों की स्क्रीनिंग, अनुकम्पा नियुक्ति, ऋण वसूली, पदोन्नति, सेवानिवृत्ति आदि से सम्बंधित प्रकरण शामिल हैं।