नई दिल्ली, 19 नवम्बर। देव दिवाली का दिन देश के किसानों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया। नित नये विवादास्पद बयानों और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से किसान आंदोलन को बदनाम करने और विफल करने में मुंह की खाने के बाद, केंद्र की भाजपा सरकार ने हाल ही में जबरिया थोपे गये तीन कृषि कानून वापिस लेने की घोषणा कर दी। सिख समुदाय के सबसे बड़े पर्व गुरुनानक जयंती के पावन पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन के दौरान कृषि कानून वापिस लेने की ऐलान करते हुए देशभर में किसानों से आंदोलन समाप्त करने की अपील की, हालांकि किसान संगठनों ने विधायी प्रक्रिया से संसद से कानून वापिस होने के साथ-साथ अन्य मांगों को माने जाने पर ही आंदोलन समाप्त करने की बात कही है।
14 महीने तक किसानों के आंदोलन को देश के विकास के लिए खलनायक साबित करने पर तुली रही मोदी सरकार को अंतत: किसानों की एकजुटता और शक्ति के आगे नतमस्तक होना पड़ा। पीएम ने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में यह घोषणा करते हुए कहा कि उनकी सरकार ये कानून किसानों के हित में नेक नीयत से लाई थी, लेकिन हम कुछ किसानों को समझाने में विफल रहे।
अपने 18 मिनट के सम्बोधन में देशवासियों को प्रकाश पर्व और देव दीपावली की शुभकामनाएं देते हुए मोदी ने कहा, मैं देशवासियों से क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी, जिसके कारण मैं कुछ किसानों को समझा नहीं पाया। मैं आंदोलनकारी किसानों से घर लौटने का आग्रह करता हूं और तीनों कानून वापस लेता हूं। इस महीने के अंत में संसद सत्र शुरू होने जा रहा है, उसमें कानूनों को वापस लिया जाएगा।
किसान हित में सरकार के काम गिनाये
प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के हित में अपनी सरकार के काम और योजनाओं को गिनाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार की 10 हजार एफपीओ किसान उत्पादक संगठन बनाने की प्लानिंग है। हमने कृषि जिंसों का अधिकतम समर्थन मूल्य और कृषि ऋण बढ़ा दिया है। हमारी सरकार किसानों, खासतौर पर छोटे किसानों के हित में लगातार एक के बाद एक कदम उठाती जा रही है। इसी अभियान में तीन कृषि कानून लाए गए थे, ताकि किसानों को फायदा हो, लेकिन हम किसानों को कृषि कानून के फायदे समझाने में लेकिन हम उन्हें समझाने में नाकाम रहे।
सितम्बर 2020 में संसद में पास किये थे कृषि कानून
उल्लेखनीय है कि तीन नए कृषि कानून 17 सितम्बर, 2020 को लोकसभा में पारित किये गये थे, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितम्बर 2020 को कृषि कानून पर हस्ताक्षर किये थे। इसके बाद से ही किसान संगठनों ने देश भर में इन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन आरम्भ कर दिया था।
ये हैं वो कृषि कानून, जिनके खिलाफ थे किसान
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
इस कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है, जहां किसान और कारोबारी को मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च कम करने की बात भी इस कानून में है। किसानों का कहना था कि इससे मंडी सिस्टम व एमएसपी समाप्त हो जायेंगे।
2. कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
इस कानून में एग्रीकल्चर एग्रीमेंट पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवा, कृषि बिजनेस फर्म, प्रॉसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेता और निर्यातक के साथ किसानों को जोड़ता है। इसके साथ किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति करना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात इस कानून में है। जबकि किसानों को आशंका थी कि इससे बड़े कारपोरेट घरानों का कृषि पर कब्जा हो जायेगा और छोटा किसान समाप्त हो जायेगा।
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। सरकार का दावा है कि इससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिल सकेगी, क्योंकि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। किसानों को आशंका थी कि इससे किसानों को फसलों का सही मूल्य नहीं मिलेगा, कालाबाजारी और महंगाई बढेगी।