नई दिल्ली, 23 अगस्त। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रच दिया है। बुधवार की शाम को चंद्रयान-3 ने चांद की सतह पर सफल लैंडिंग कर ली है। भारत का नाम अब दुनिया के उन देशों में जुड़ गया है, जो सॉफ्ट लैंडिंग में एक्सपर्ट हैं। इस सफलता को प्राप्त करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन चुका है। पिछली बार चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग हुई थी, तब भारत को बहुत मायूसी हाथ लगी थी, लेकिन इस बार अचूक तैयारी की गई थी और परिणाम सफलता के रूप में प्राप्त हुआ है। इसरो ने चांद पर परचम लहरा दिया है। चंद्रयान-3 ने चांद की सतह पर अपना कदम रख दिया है। वैज्ञानिकों की मानें तो पूरी दुनिया की नजरें भारत के मिशन चांद पर टिकी हुई हैं, क्योंकि चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भारत पहला देश बन गया है।
चंद्रयान-3 से विश्व को बड़ी उम्मीद
अब पूरे विश्व को चांद से जुड़े कई सवालों के जवाब मिलेंगे। क्योंकि दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका चांद तक पहुंच गया, लेकिन चांद का रहस्य सुलझाने में नाकाम रहा। रूस चांद तक तो पहुंच गया, लेकिन चंद्रमा पर जीवन की संभावना है या नहीं? इस सवाल का जवाब तलाश नहीं सका। चांद पर चीन का अंतरिक्ष यान भी लैंड हुआ, लेकिन चांद की पहेली सुलझ नहीं सकी।
पिछले प्रयास में भले ही भारत का चंद्रयान लैंडिंग के वक्त फेल हो गया, लेकिन भारत के मिशन से दुनिया को पहली बार पता चला कि चांद पर पानी मौजूद है। इससे पहले चांद पर पानी की संभावना को नासा सिरे से नकार चुका था। अब पूरी दुनिया की नजरें भारत के चंद्रयान-3 पर हैं। 23 अगस्त पर चंद्रयान-3 की हुई सफल लैंडिंग का मतलब है- चांद को लेकर इंसानी दिमाग में चल रहे एक-एक सवाल का जवाब मिलने की उम्मीद है।
क्या चंद्रमा पर जिंदगी संभव है?
पिछले साल चांद को लेकर नासा के एक बड़े वैज्ञानिक, नासा के अंतरिक्ष प्रोग्राम के चीफ हावर्ड हू ने दावा किया था कि साल 2030 से पहले चांद पर इंसान लंबे वक्त तक रह सकता है। तो क्या धरती से 3 लाख 84 हजार किलोमीटर दूर चंद्रमा पर जिंदगी संभव है?
वैज्ञानिक हावर्ड हू के मुताबिक, साल 2030 से पहले चांद पर इंसान एक्टिव हो सकते हैं, जिसमें उनके रहने के लिए बस्ती होंगी और उनके काम में मदद करने के लिए रोवर्स होंगे। इस दशक में हम कुछ लंबे कालखंड के लिए चांद पर रह सकते हैं। वहां इंसानों के रहने लायक जगह होगी। उनके पास जमीन पर रोवर्स होंगे। हम चांद की जमीन पर इंसानों को भेजेंगे और वो वहां रहकर वैज्ञानिक काम करेंगे। वैज्ञानिक जल्द ही वहां के वातावरण में ढल जाएंगे।
माइनस 230 डिग्री तापमान
इसरो के पूर्व डायरेक्टर प्रमोद काले ने बताया था कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर तापमान माइनस 230 डिग्री तक चला जाता है। इतनी कड़ाके की सर्दी में दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान का काम कर पाना संभव नहीं है। यही वजह है कि 14 दिन तक जब दक्षिणी ध्रुव पर रोशनी रहेगी, तभी तक इस मिशन को अंजाम दिया जाएगा।
अपने गतिविधियों को कैसे अंजाम देगा चंद्रयान-3
रोवर पर दो पेलोड्स, वो क्या करेंगे?
1. लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप – यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा। साथ ही खनिजों की खोज करेगा।
2. अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर – यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा। जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा। इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी।
वैज्ञानिकों के लिए क्या है फायदा
विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करेंगे। इससे इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य की स्टडी के लिए जानकारी मिलेगी। रिसर्च करने में आसानी होगी।
इसरो को क्या फायदा होगा
इसरो दुनिया में अपने किफायती कॉमर्शियल लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है। यहां से अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ा जा चुका है। एक ही राकेट से 104 सैटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है। चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है। उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी। मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है। चंद्रयान-3 की सफलता इसरो का नाम दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेसियों में शामिल कर देगी।
आम आदमी के लिए क्या?
चंद्रयान और मंगलयान जैसे स्पेसक्राफ्ट्स में लगे पेलोड्स यानी यंत्रों का इस्तेमाल बाद में मौसम और संचार संबंधी सैटेलाइट्स में होता है। रक्षा संबंधी सैटेलाइट्स में होता है। नक्शा बनाने वाले सैटेलाइट्स में होता है। इन यंत्रों से देश में मौजूद लोगों की भलाई का काम होता है। संचार व्यवस्था विकसित करने में मदद मिलती है। निगरानी आसान हो जाती है।