राजस्थान के विभिन्न केंद्रीय सहकारी बैंकों से जुड़ी सहकारी समितियों यानी पैक्स और लैम्पस एवं बैंक स्टाफ के बीच मिलीभगत का एक और बड़ा नमूना ऋणमाफी योजना में भारी गड़बड़ी के रूप में सामने आया है। कतिपय केंद्रीय सहकारी बैंकों में कृषि ऋण माफी योजना में गड़बड़ी सामने आने के बाद सहकारिता विभाग एवं संस्थाओं मे हडक़म्प मचा हुआ है।
इस गंभीर वित्तीय गड़बड़ी का खुलासा डूंगरपुर केंद्रीय सहकारी बैंक से शुरू हुआ जो अब चूरू, भरतपुर और जैसलमेर तक पहुंच गया। सरकार ने इसे बेहद गंभीरता से लेते हुए व्यापक स्तर पर जांच शुरू करवा दी है। डूंगरपुर में शुरूआती जांच के बाद बड़े पैमाने पर अनियमितताओं की पुष्टि होने पर वहां एक-एक प्रकरण की जांच की जायेगी, जिसके लिए ऑडिटर्स की 20 टीम लगायी गयी हैं। डूंगरपुर की घटना से सबक लेते हुए सरकार ने प्रदेश के समस्त जोनल एडिशनल रजिस्ट्रार को यह जिम्मेदारी दी है कि वे अपने-अपने क्षेत्र के प्रत्येक केंद्रीय सहकारी बैंक में जाकर ऋणमाफी प्रकरणों की जांच करें।
हालांकि शुरूआत में यही सामने आया है कि कुछ ग्राम सेवा सहकारी समितियों द्वारा ऋणमाफी की सूचियां तैयार करने में गड़बड़ी की गयी, लेकिन इस फर्जीवाड़े के खुलने के बाद यह निश्चित हो गया है कि सम्बंधित बैंक के कार्मिकों, खास तौर पर फील्ड स्टाफ और शाखा स्टाफ की मिलीभगत के बिना, इस प्रकार की गड़बड़ी संभव नहीं है। सोसायटी और बैंक शाखा स्टाफ ने व्यवस्थागत कमियों को अनुचित लाभ उठाते हृुए इस घटना को अंजाम दिया है।
इस घटना ने केंद्रीय सहकारी बैंकों के कम्प्यूटराइजेशन पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। आखिर यह कैसे संभव है कि जिस व्यक्ति को लोन ही नहीं मिला, उसे कर्जमाफी का लाभ मिल जाये। सहकारी बैंकों में कम्प्यूटराइजेशन के बाद से, सहकाारिता विभाग के नियमानुसार सोसायटियोंं के ऋणी सदस्यों का बैंक में बचत खाता खोलकर डीएमआर के माध्यम से भुगतान किये जाने की प्रक्रिया निर्धारित है।
भरतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन के अनुसार, केवाईसी के बिना बैंक खाते का संचालन नहीं किया जा सकता। पूर्ववती्र भाजपा सरकार के शाासनकाल में हुई ऋणमाफी योजना में भी ऋणी के बैंक खाते का आधार कार्ड और भामाशाह से लिंक होना अनिवार्य था।
व्यवस्थापक द्वारा तैयार की गयी सूची का ऋण पर्यवेक्षक और शाखा प्रबंधक द्वरा सत्यापन करने के पश्चात ही उसे कर्जमाफी के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाए गए पोर्टल पर अपलोड किया गया था। उसके पश्चात प्रधान कार्यालय की मोनेटरिंग और ऋणमाफी प्रकरणों की रेंडमली जांच की प्रकिया निर्धारित की गयी थी। इन सब के बावजूद सोसायटियों के अपेक्षाकृत कम शिक्षित और तकनीकी ज्ञानरहित कुछ व्यवस्थापकों द्वारा योजना को पलीता लगा देना, आश्चर्य और निराशाा का विषय है।
इसी से बैंक की मिलीभगत की आशंका बलवती होती है। दुख का विषय है कि जिस राशि का उपयोग प्रदेश के अन्नदाता के लिए होना चाहिए था, उस राशि से कुछ ठग किस्म के लोगों ने अपनी तिजोरियों में भर लिया और पात्र किसान वंचित रह गये। और उन चंद लोगों के कारण आज पूरी व्यवस्थापक बिरादरी को संदेह की नजरों से देखा जा रहा है।
सरकार ने पूरी ऋण माफी योजना की जांच करवाने का निर्णय लेकर निश्चित तौर पर अच्छा कदम उठाया है, लेकिन इससे साथ-साथ व्यवस्थागत कमियों को दूर करना बहुत आवश्यक है। भाजपा सरकार ने 50 हजार रुपये की ऋणमाफी योजना लागू की थी और कतिपय स्वार्थी लोगों ने इसका ये हाल कर दिया जबकि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने 2 लाख रुपये तक माफी की योजना लागू की है।
यदि व्यवस्थागत और प्रक्रियागत कमियां दूर नहीं हुई तो इससे ठगों की चांदी हो जायेगी। इसके साथ इस गड़बड़ी में सम्मिलित लोगों को कड़ी सजा देकर भी प्रदेश में एक कठोर संदेश दिया जाना अनिवार्य है। ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई करने के साथ-साथ, उसने राशि की वसूली के लिए भी आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
-मनीष मुंजाल, सम्पादक सहकार गौरव