अपेक्स बैंक के डीजीएम पीके नाग को सहयोग के लिए लगाया
जयपुर (मुखपत्र)। पूर्ववर्ती सरकार में सहकारिता मंत्री अजय सिंह किलक के गृह जिला नागौर स्थित केंद्रीय सहकारी बैंक द्वारा महंगी ब्याज दर पर कर्ज लेकर सस्ती दर पर बांटने और सीआरएआर डिफाल्ट करने की जांच का आदेश दिया गया है।
सरकार ने अजमेर जोन के एडिशनल रजिस्ट्रार आर के पुरोहित को जांच की जिम्मेदारी दी है। उनके साथ सहयोग के लिए अपेक्स बैंक के उप-महाप्रबंधक (आयोजना एवं विकास) प्रमोद कुमार नाग को लगाया गया है। दोनों ही अधिकारी बैंकिंग इंडस्ट्रीज के अनुभवी हैं। पुरोहित अजमेर, हनुमानगढ़ व झालावाड़ सहित विभिन्न बैंकों के प्रबंध निदेशक व बीकानेर खंड के अतिरिक्त खंडीय रजिस्ट्रार रह चुके हैं जबकि पीके नाग अपेक्स बैंक के क्षेत्रीय महाप्रबंधक व जैसलमेर सीसीबी के एमडी रह चुके हैं।
बैंक प्रबंधन पर आरोप है कि उन्होंने गलत तथ्यों के आधार पर वर्ष 2017-18 में सीआरएआर (पूंजी पर्याप्तता अनुपात) 9 प्रतिशत बताया था। नाबार्ड की जांच में सीआरएआर को इससे कम पाया। इस गलफत के लिए नाबार्ड ने फसली ऋण के लिए नागौर सीसीबी का रिफाइनेंस (पुनर्भरण) रोक दिया, जिसके चलते किसानों को फसली ऋण नहीं मिलने की आशंका पैदा हो गयी है।
प्रबंधन पर ऊंची ब्याज दर पर कर्ज लेकर सस्ता ऋण बांटते हुए बैंक को वित्तीय नुकसान पहुंचाने का भी आरोप है। गत वर्ष नागौर सीसीबी ने अपेक्स बैंक से 8.65 प्रतिशत ब्याज दर पर 90 करोड़ रुपये का ऋण लिया था, जिसे फसली ऋण के रूप में बांटा गया। इसके लिए बैंक को केंद्र व राज्य सरकार द्वारा मात्र 7 प्रतिशत ब्याज अनुदान मिलना है।
वर्ष में कमजोर आर्थिक प्रदर्शन के कारण नागौर सहित 15 केंद्रीय सहकारी बैंकों के समक्ष, आरबीआई द्वारा निर्धारित सीआरएआर का स्तर कायम रखने का संकट पैदा हुआ तो सरकार ने 31 मार्च 2019 को इन बैंकों को शेयर कैपिटल के लिए 123 करोड़ रुपये जारी कर दिये। इससे 14 बैंक का सीआरएआर स्तर निर्धारित मानदंडों के अनुरूप हो गया, लेकिन शेयर कैपिटल के रूप में 8.87 करोड़ रुपये मिलने के बावजूद नागौर सीसीबी डिफाल्ट कर गया। इसके कारणों का पता लगाने के लिए जांच का आदेश दिया गया है।
क्या होता है सीआरएआर
यह बैंक की पंूजी को मापने का एक तरीका है। यह वास्तव में बैंक की जोखिम वाली पंूजी का प्रतिशत बताता है। इस धन का इस्तेमाल जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा और वित्तीय तंत्र के स्थायित्व के लिए किया जाता है। डिपोजिट को नुकसान पहुंचाए बगैर, लोन बुक पर बैंक कितना लोन उठा सकता है, पूंजी पर्याप्तता अनुपात से इसका पता चलता है। अगर यह अनुपात तय मानदंडों से अधिक है तो जमाकर्ताओं का जोखिम कम होता है। यह बैंक की जोखिम धारित के्रेडिट को प्रतिशत के रूप में व्यक्त करता है।
आरबीआई तय करता है सीआरएआर
भारतीय रिजर्व बैंक या किसी भी देश का केंद्रीय बैंक, देश में बैंकों को लाइसेंस देता है, नियम बनाता है और बैंक ठीक से काम करें इसकी निगरानी करता है। बैंक कारोबार करते हुए कई बार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं। इनको संकट से उबारने को आरबीआइ समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता है और फ्रेमवर्क बनाता है। ‘प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शनÓ (पीसीए) इसी तरह का फ्रेमवर्क है, जो किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पैमाना तय करता है। यह फ्रेमवर्क समय-समय पर हुए बदलावों के साथ दिसंबर, 2002 से चल रहा है।
आरबीआइ को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पर्याप्त पूंजी नहीं है, उधार दिए धन से आय नहीं हो रही और मुनाफा नहीं हो रहा है तो उस बैंक को ‘पीसीएÓ में डाल देता है, ताकि उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें। हालांकि यह तब होता है जब बैंकों से इस तरह का कोई संकेत मिलता है।
बैंकों के लिए सीआरएआर यानी ‘कैपिटल टू रिस्क असेट रेश्योÓ फिलहाल नौ प्रतिशत निर्धारित है। अगर किसी बैंक का सीआरएआर इससे कम होता है तो उस बैंक की वित्तीय सेहत खराब मानी जाती है। इस तरह सीआरएआर में उतार-चढ़ाव आने पर बैंक को पीसीए में डालने का फैसला किया जाता है।