श्रीगंगानगर, 3 जनवरी (मुखपत्र)। कई दिन से श्रीगंगानगर जिले में न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहने, उत्तर दिशा से ठण्डी हवा चलने तथा आसमान साफ रहने से फसलों को पाले से नुकसान की आशंका है। इस सम्बंध में कृषि विभाग की ओर से एडवाइजरी जारी कर किसानों से अपील की गई है कि वे फसलों में पाले से बचाव के उपाय करें।
कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. जीआर मटोरिया ने बताया कि रबी फसलों में फूल आने एवं बालियाँ/फलियाँ आने व बनते समय पाला पडऩे की सर्वाधिक आशंका रहती है। इस समय किसानों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा का उपाय करना चाहिये। उन्होंने बताया कि पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिये फसलों को टाट, पोलीथिन अथवा भूसे से ढक दें।
वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुन: हटायें।
हल्की सिंचाई से नुकसान में कमी लाना सम्भव
जब पाला पडऩे की आशंका हो, तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
गंधक के तेजाब का छिड़काव करें
जिन दिनों पाला पडऩे की आशंका हो, उन दिनों फसलों पर 1 एम.एल. गन्धक का तेजाब या डाइमिथाइल सल्फोआक्साइड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की आशंका हो तो छिड़काव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें या थायो यूरिया 500 पीपीएम (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
ये पेड़ भी पाले से बचाते हैं…
सरसों, गेहूँ, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती हैं। दीर्घकालीन उपाय के रूप में खेत की उत्तर-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू आदि लगा दिये जायें तो पाले और ठण्डी हवा के झौंकों से फसल का बचाव हो सकता है।
पाला पडऩे के संकेत
उन्होंने बताया कि क्षेत्र में 25 दिसम्बर से 15 फरवरी तक अत्यधिक पाला पडऩे की आशंका रहती है। जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान काफी कम हो जाये, तब पाला पडऩे की आशंका बढ़ जाती है। दिन के समय सूर्य की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है तथा जमीन से यह गर्मी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानान्तरित हो जाती है, इसलिए रात्रि में जमीन का तापमान गिर जाता है तथा कई बार तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम हो जाता है। ऐसी अवस्था में ओस की बूंदे जम जाती है। इस अवस्था को हम पाला कहते है। पाला पडऩे के लक्षण सर्वप्रथम आक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते हैं।
सभी फसलों को होता है पाले से नुकसान
शीतलहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को नुकसान होता है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियाँ एवं फूल झुलस कर झड़ जाते हैं तथा अधपके फल सिकुड़ जाते हैं। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं व बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं।